द्विपदी
*
तितलियाँ खुद-ब-खुद चूमेंगी हमें
चल महकते फूल बनें, खिल जाएँ
मुक्तक
*
दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया
*
दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया
*
२१.४.२०१७
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तितलियाँ खुद-ब-खुद चूमेंगी हमें
चल महकते फूल बनें, खिल जाएँ
मुक्तक
*
दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया
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दर्पण में जिसको देखा वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका तो उसको पाया
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२१.४.२०१७
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