कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

दोहा / घनाक्षरी

एक दोहा
संजीव
*
मैं-तुम बिसरायें कहें, हम सम हैं बस एक.
एक प्रशासक है वही, जिसमें परम विवेक..
*
एक घनाक्षरी
पारस मिश्र, शहडोल..
*
फूली-फूली राई, फिर तीसी गदराई. बऊराई अमराई रंग फागुन का ले लिया.
मंद-पाटली समीर, संग-संग राँझा-हीर, ऊँघती चमेली संग फूँकता डहेलिया..
थरथरा रहे पलाश, काँप उठे अमलतास, धीरे-धीरे बीन सी बजाये कालबेलिया.
आँखिन में हीरकनी, आँचल में नागफनी, जाने कब रोप गया प्यार का बहेलिया..
******************

कोई टिप्पणी नहीं: