अहर्निश छंद:
*
विधान: प्रति पद तीन चरण, १०-८-६ पर यति, कुल कलाएँ २४, पदांत गुरु।
लक्षण छंद:
रच छंद अहर्निश, दस अठ छह नित, गुरु सुमिरो।
सिय राम पुकारो, मिल प्रभु प्यारों, भजन करो।।
जब जो घटना है, तब घटता है, सहन करो।
हनुमत सम चुप रह, कुछ न कभी कह, नमन करो।।
*
उदाहरण:
ध्वज लहर लहर कर, फहर फहर कर, गुण गाता।
जो बलिदानी हैं, उन्हें न भूलो, समझाता।।
कर गर्व देश पर, भारतवासी, तर जाता।
अरि-शीश काटकर, निज बलि देकर, जी जाता।।
***
टीप: अहर्निश छंद की लय त्रिभंगी छंद से मिलती है। त्रिभंगी के १०-८-८-६ के ४ चार चरण में से ८ मात्रिक एक चरण निकल दें तो १०-८-६ के तीन चरण और पदांत गुरु शेष रहता है जो अहर्निश छंद है।
त्रिभंगी
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विधान: प्रति पद तीन चरण, १०-८-६ पर यति, कुल कलाएँ २४, पदांत गुरु।
लक्षण छंद:
रच छंद अहर्निश, दस अठ छह नित, गुरु सुमिरो।
सिय राम पुकारो, मिल प्रभु प्यारों, भजन करो।।
जब जो घटना है, तब घटता है, सहन करो।
हनुमत सम चुप रह, कुछ न कभी कह, नमन करो।।
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उदाहरण:
ध्वज लहर लहर कर, फहर फहर कर, गुण गाता।
जो बलिदानी हैं, उन्हें न भूलो, समझाता।।
कर गर्व देश पर, भारतवासी, तर जाता।
अरि-शीश काटकर, निज बलि देकर, जी जाता।।
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टीप: अहर्निश छंद की लय त्रिभंगी छंद से मिलती है। त्रिभंगी के १०-८-८-६ के ४ चार चरण में से ८ मात्रिक एक चरण निकल दें तो १०-८-६ के तीन चरण और पदांत गुरु शेष रहता है जो अहर्निश छंद है।
त्रिभंगी
रस-सागर पाकर, कवि ने आकर, अंजलि भर रस-पान किया।
ज्यों-ज्यों रस पाया, मन भरमाया, तन हर्षाया, मस्त हिया।।
कविता सविता सी, ले नवता सी, प्रगटी जैसे जला दिया।
सारस्वत पूजा, करे न दूजा, करे 'सलिल' ज्यों अमिय पिया।।
अहर्निश (उक्त का तीसरा चरण हटाकर)
रस-सागर पाकर, कवि ने आकर, पान किया।
ज्यों-ज्यों रस पाया, मन भरमाया, मस्त हिया।।
कविता सविता सी, ले नवता सी, जला दिया।
सारस्वत पूजा, करे न दूजा, अमिय पिया।।
उक्त का दूसरा चरण हटाकर
रस-सागर पाकर, अंजलि भर रस-पान किया।
ज्यों-ज्यों रस पाया, तन हर्षाया, मस्त हिया।।
कविता सविता सी, प्रगटी जैसे जला दिया।
सारस्वत पूजा, करे 'सलिल' ज्यों अमिय पिया।।
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