द्विपदी
*
परवाने जां निसार कर देंगे.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
*
तितलियों की चाह में भटको न तुम.
फूल बन महको चली आएँगी ये..
*
जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.
मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..
*
बाप की दो बात सह नहीं पाते
अफसरों की लात भी परसाद है..
*
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..
*
संवस
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परवाने जां निसार कर देंगे.
हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..
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तितलियों की चाह में भटको न तुम.
फूल बन महको चली आएँगी ये..
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जब तलक जिन्दा था रोटी न मुहैया थी.
मर गया तो तेरहीं में दावतें हुईं..
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बाप की दो बात सह नहीं पाते
अफसरों की लात भी परसाद है..
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पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.
मैं ढूँढ-ढूँढ हारा, घर एक नहीं मिलता..
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संवस
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