दोहा
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नर से वानर जब मिले, रावण का हो अंत.
'सलिल' न दानव मारते, कभी देव या संत..
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अक्षर की आराधना, हो जीवन का ध्येय.
सत-शिव-सुंदर हो 'सलिल', तब मानव को ज्ञेय..
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सत-चित-आनंद पा सके, नर हो अगर नरेंद्र.
जीवन की जय बोलकर, होता जीव जितेंद्र..
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१५.४.२०१०
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