तकनीक-
जीन एडिटिंग: कल और आज १
संजीव
*
भारतीय पौराणिक वांग्मय में अनेक प्रसंग हैं जिनमें असामान्य जन्म संकेतित है। गणेश, कार्तिकेय, दशरथ नंदन, सीता, कौरव, द्रौपदी आदि के प्रसंग सर्वविदित हैं। विग्यान सम्मत टैस्ट ट्यूब बेबी और सरोगेसी जन्म काल्पनिक कहे जाते अनेक प्रसंगों को प्रामाणिक ठहरा रहा है।महाभारत कालीन विश्वामित्र के जन्म की कथा तथा विश्वामित्र की बहिन सत्यवती की कोख से महर्षि जमदग्नि के जन्म की कथा असामान्य हैं। गांधारी को गर्भपात पश्चात् मांसपिंड से वेदव्यास द्वारा सौ कौरवों का जन्म कराना अब तक अविश्वसनीय माना जाता रहा है।
राजा गाधि की पुत्री सत्यवती की विवाह ऋषि ऋचीक से हुआ था। सत्यवती को संतान न होने पर ऋचीक ने कृत्रिम विधि से संतान प्राप्ति का निश्चय किया। सत्यवती ने अपनी माता के लिए पुत्र प्राप्ति का उपाय करने को कहा ताकि उनके पिता को गद्दी का वारिस मिल सके। भृगु ने दिव्य औषधियों से युक्त दो चरु (घड़ा की तरह के पात्र)
तैयार किए। सत्यवती को लिए वैदग्य पुत्र तथा उनकी माता के लिए क्षत्रिय पुत्र हो ऐसे गुण सूत्रों की रचना ऋचीक ने की। सत्यवती की माँ को संदेह हुआ कि जामाता ने अपनी पत्नि को लिए श्रेष्ठ पुत्र की उपाय किया होगा। उन्होंने चुपचाप चरु बदल लिए। फलत: सत्यवती को वीरवर जमदग्नि तथा माँ को ऋषि विश्वामित्र की- प्राप्ति हुई। जमदग्नि-पुत्र परशुराम भी वीर हुए।
महाभारत काल में ही गर्भ-धारण के नवें माह में गांधारी का गर्भपात होने पर महर्षि व्यास ने सौ चरुओं में औषधियुक्त घी भरकर इनमें मांस पिंड को टुकड़े डालकर उनके मुँह बंद कर दिए। कुथ दिन बाद गांधारी ने एक पुत्री की कामना की तो व्यास ने एक चरु खोलकर उसके मांसपिंड का उपचार कर चरु बंद कर दिया। इनसे दो वर्ष बाद ९९ कौरव भाइयों तथा उनकी एक बहिन दुबला का जन्म हुआ।
मार्स काल में चाणक्य द्वारा बिंबसार का जन्म भी असाधारण विधि से कराया गया था। ऐसे प्रसंगों को गल्प कहा जाता रहा पर अब विग्यान इन पर सत्यता की मुहर लगाने जा रहा है।
विग्यान के अनुसार हर नया जीव पुराने का नया संस्करण होता है। वह नए रंग-रूप को साथ वंशानुगत गुण-दोष लेकर पैदा होता है। यदि भ्रूण की कोशिकाओं में बदलाव किया जा सके तो वंशानुगत दोषों, बीमारियों को दूर किया जा सकता है तथा वांछित गुण संपन्न जातक प्राप्त किया जा सकता है। चीनी वैग्यानिक हे जियानकुई ने वंशानुगत संशोधन (जीन एडिटिंग) की तकनीक 'क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रोमिक रिपीट्स' (सीआरआईएसपीआर) द्वारा नवंबर २०१८ के अंतिम सप्ताह में दो बच्चियों को जन्म की दावा किया है। इस तकनीक में एक जीनोम से- आनुवंशिक तत्व निकालकर अन्य जीनोम में डाला जाता है। डीएनए में कोशिका स्तर पर बदलाव से संतान को माता-पिता की बीमारियों से मुक्त किया जा सकता है।
जियानकुई का दावा है कि उन्होंने एचआईवी (एड्स) संक्रमित पिता की जीन कुंडली में बदलाव कर नवजातों को इस वंशानुगत रोग से मुक्ति दिलाई है।
इसके पूर्व चीन ने २०१८ में ही वंशाणु परिवर्धन और भ्रूणीय स्तंभ कोशिका (एंब्रायोनिक स्टेम सेल) की मदद से २०-१० भ्रूणों से २९ स्वस्थ संतानों को जन्म दिया गया जिन्होंने संतानों को जन्म दिया तथा खुद पूरी उम्र जिए। चीन में दो चूहों की मदद से संतानोत्पत्ति का प्रयोग किया गया पर वह अल्पजीवी रही। शोधकर्ता क्ली धोई के अनुसार जो नर या दो मादा चूहों से भी संतानोत्पत्ति संभव है। भारत में 'पुनर्मूषको भव' (फिर चुहिया हो जा) कहानी में ऋषि बाज से त्रस्त चुहिया को मानवी बनाकर पाते हैं तथा विवाहयोग्य होने पर उसके द्वारा सूर्य, बादल, पवन व पर्वत को ठुकराकर चूहे को पसंद करने पर फिर चुहिया बनाकर ब्याह देते हैं। यह कथा वंशानुगत गुण-दोष का प्रभाव तथा बदलाव का सत्य युगों से बताती आई है जिसे अब विग्यान सत्य सिद्ध कर रहा है।
मनचाहे गुणयुक्त संतान की कामना पूर्ति की राह सहज नहीं है। जीन विलीन करने की तकनीकों से सरीसृपों व उभयचर जीवों तथा मछलियों में केवल नर या मादा से संतान उत्पन्न करने में सफलता मिलने का बाद भी दो चुहियों से पैदा की गई संतान में कमियाँ पाई गईं जिन्हें हैप्लॉयड एंब्रायोनिक स्टेम सेल की मदद से दूर किया गया। २०१८ के आरंभ में चाइनीज़ इंस्टीयूट अॉफ न्यूरोसाइंस के वैग्यानिकों ने बंदर की त्वचा से ली गई स्तंभ कोशिकाओं से भ्रूण की विकास कर बंदरों को अस्तित्व में लाए हैं। लगभग २-२ साल पहले डॉली नामित भेड़ का उत्सर्जन विभाजित स्तंभ कोशिकाओं को विशिष्ट कोशिका के रूप में विकसित कर किया गया था। मेंढक, भेड़, कुत्ता, बिल्ली, सुअर, चूहे, खरगोश व गाय आदि २० से अधिक जैव-प्रजातियों को क्लोन से उत्पन्न किया जा चुका है किंतु मानव क्लोन बनाना अब तक संभव नहीं हुआ था।
किसी प्राणी की कायिक कोशिका (सोमोटिक सेल) के केंद्रक (न्यूक्लियस) का स्थानांतरण अति कठिन है। यह ऐसी अलिंगी प्रक्रिया है जिससे किसी प्राणी की प्रतिकृति तैयार की जा सकती है। चीनी वैग्यानिकों ने 'मकैक' प्रजाति के वानरों के क्लोन से 'हुआ-हुआ' और 'झोंग-झोंग' वानरों को अवतरित कर चमत्कार किया। इसका उद्देश्य एक जैसे जींसवाले वानरों का निर्माण करना बताया गया ताकि मानवों हेतु अनिवार्य औषधियों के परीक्षण किए जा सकें। इस तरह पार्किंसन, हृदय रोग आदि पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
चीन जीन संशोधन से चूहे और क्लोन पद्धति से- दो वानरों का निर्माण कर कृत्रिम मानव निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया है। एड्स पीड़ित पिता - एड्स मुक्त माता की संतान को वंशानुगत एड्स से मुक्त रखने के लिए कोशिका से एड्स विषाणु को 'क्रिस्पर कैश ९' तकनीक द्वारा अलग किया गया। इस तकनीक को 'अणु कैंची' कहा जा सकता है। यह तकनीक 'कैश ९' नामक एंजाइम का प्रयोग कर डीएनए में प्रवाहित विषाणु को काटकर पृथक कर देती है। इस प्रक्रिया में आरएनए अणु दिशा-निदेशक की तरह कार्य करता है। जीव परिवर्तन द्वारा इच्छित गुण युक्त बच्चे या 'डिजाइनर बच्चे' उत्पन्न किए जा सकेंगे। इसमें अनंत संभावनाएँ छिपी हैं। बच्चों को रोगमुक्त करने के साथ अति बुद्धिमान बनाना भी संभव हो सकेगा।
'जीन संपादन' (जीन एडिटिंग) मानव जीवन के रहस्य छिपाए तीन अरब रासायनिक रेखा-तंतु मानव जीनोमों में परिवर्तन कर मनचाहे गुणयुक्त संतति प्राप्ति का प्रयास है।
मानव-जीनोम की संरचना को वर्ष २००० में अमरीका के क्लेग वेंटर व फ्रांसिस कॉलिंस ने जीवन की आधारभूत संजीवनी डीएनए (डिअॉक्सीरिबोन्यूक्लिक एसिड) के असंख्य अणुओं का प्रक्रिया को समझा। दुनिया के सामने पहली बार डीएनए की जटिल-रहस्यमय संरचना प्रकट हुई। मानव मस्तिष्क में क्रिया-प्रतिक्रिया संकेतक एक लाख से अधिक डीएनए-तंतु (जीन) होने की पूर्वधारणा भंग हुई। इन दोनों ने प्रमाणित किया कि मानव शरीर में तीस हजार जीन हैं। मनुष्यों और चूहों के जीवों में सादृश्यता के कारण मनुष्य की आंतरिक संरचना को समझने के लिए सर्वाधिक प्रयोग चूहों पर किए गए। जीनों के व्यवहार व प्रभाव की जानकारी बढ़ने के साथ रोगों पर नियंत्रण कोशिका स्तर पर ही पाया जा सकेगा। जीन एडिटिंग चिकित्सा जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन की वाहक होगी।
हम एक-
वसुधैव कुटुंबकम् और विश्वैक नीड़म् की भारतीय अवधारणाओं को इस अनुसंधान ने सत्य प्रमाणित किया है। दुनिया के सभी मनुष्यों के ९९.९९ प्रतिशत जीन समान पाए गए हैं। भारतीय अध्यात्म एक ब्रम्ह से सकल सृष्टि की उत्पत्ति मानता है। पौराणिक साहित्य सबको मनु-शतरूपा का वंशज कहता है। ईसाई व मुसलमान मत आदम-हव्वा की औलाद बताते हैं। अमरीकी वैग्यानिकों मार्क स्टोकर व डेविड थॉलर ने एक लाख प्रजातियों के पचास लाख पशुओं व मानवों के डीएनए बारकोड परीक्षण कर सब मानवों को एक ही स्त्री-पुरुष की संतानें बताया है जो लगभग दो लाख साल पहले पृथ्वी पर कहीं रहते थे।
यह भी कि हर दस में से नौ प्राणियों का जन्म व विकास एक ही माता-पिता से- हुआ है और सभी जीवों की ९९ प्रतिशत प्रजातियाँ विद्यमान हैं। सनातन धर्म में प्रचलित दशावतार की अवधारणा को यह खोज सही बताती है।
नर ही प्रमुख
जीनों में अधिकतम परिवर्तन नर प्रजातियों में पाए गए हैं। वे आनुवंशिक गुण-दोषों के वाहक हैं। संभवत: इसीलिए नर को प्रमुखता प्राप्त हुई। लगभग ढाई करोड़ साल पहले वनमानुष से मानव के विकास का राज भी तथा ग्यानेंद्रियों-कर्मेंद्रियों के विकास का मूल यहीं मिला। पंद्रह हजार मानव रोगों में से पाँच हजार को ही विग्यान अब तक जान सका है । इनमें से भी अधिकतर का उपचार प्रतिरोधी (एंटीबायोटिक्स) औषधियों पर आधारित है। एचआईवी, एड्स, स्तन कैंसर, वंशानुगत अंधत्व, मिरगी आदि तीस जीन आधारित बीमारियों का पता लग चुका है। अमरीकी व दक्षिण कोरियाई वैग्यानिकों ने २०१७ में साइंस पत्रिका में हृदय की धमनियों में चर्बी बढ़ानेवाला जीन की खोजकर उसे जीन एडिटिंग वंशाणु परिवर्धन प्रौद्योगिकी कैश ९ द्वारा दूर करने का दावा किया है। वंशानुगत कर्क रोग (कैंसर), मधुमेह, सीजोफ्रेनिया, नशा आदि रोगों के जड़-मूल से समाप्त करने मेंजीन एडिटिंग सक्षम होगी पर दमा, रक्तचाप, जोड़ दर्द का कारण जीन न होने से इन पर प्रभावी नहीं होगी।
सवालों का चक्रव्यूह
जीन एडिटिंग को प्रकृति या विधाता के काम में हस्तक्षेप मानकर इसका विरोध करनेवाले आस्तिक असंख्य हैं। इसके राजनैतिक दुरुपयोग व सामाजिक दुष्प्रभावों की आशंकाएँ भी अनंत हैं। भारत में अल्ट्रासोनोग्राफी का सामाजिक दुष्प्रभाव पुरुषों की तुलना में स्त्री जन्म दर में गिरावट के रूप में देखा गया। जीन एडिटिंग को रंग विशेष की संतानों कि लिए प्रयोग किए जाने पर विषमता बढ़ेगी। हर दंपति विद्वान, सुंदर, सबल संतान लाएगा तो समाज से विविधता समाप्त हो जाएगी। विधिक व कानूनी पहलू की दृष्टि से भी जीन एडिटिंग नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करेगी। आज डाटा कनेक्शन, डाटा चोरी का संकट सामने है, कल डीएनए बैंक, डीएनए चोरी व दुरुपयोग का संकट जीना हराम करेगा।
प्रश्न यह भी है कि क्या जीन एडिटिंग से आतंकवादी और आपराधिक मानसिकता को समाप्त किया जा सकेगा? भारतीय वांग्मय में अनेक कथाएँ हैं जिनमें देवताओं से- विशिष्ट शक्तियाँ पाने, उनका दुरुपयोग कर आतंक फैलाने और मानवता के खतरे में पड़ने का वर्णन है। क्या यह जीनथिरैपी से ही नहीं हुआ होगा या भविष्य में नहीं होगा? ऐसा हुआ तो जीन थिरैपी वरदान कम अभिशाप अधिक होगी। मनुष्य विग्यान की इस अनुपम तकनीक से क्या करेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर फिलहाल तो अनंत संभावनाओं के दरवाजे खोल रही है जीन कुंडली।
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें