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सोमवार, 5 मार्च 2018

doha

दोहा सलिला
*
खिली मंजरी देखकर, झूमा मस्त बसंत
फगुआ के रंग खिल गए, देख विमोहित संत
*
दोहा-पुष्पा सुरभि से, दोहा दुनिया मस्त
दोस्त न हो दोहा अगर, रहे हौसला पस्त
*
जब से ईर्ष्या बढ़ हुई, है आपस की जंग
तब से होली हो गयी, है सचमुच बदरंग
*
दोहे की महिमा बड़ी, जो पढ़ता हो लीन
सारी दुनिया सामने, उसके दिखती दीन
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लता सुमन से भेंटकर, है संपन्न प्रसन्न
सुमन लता से मिल गले, देखे प्रभु आसन्न
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भक्ति निरुपमा चाहती, अर्पित करना आत्म
कुछ न चाह, क्या दूँ इसे, सोच रहे परमात्म
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५-३-२०१८

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