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मंगलवार, 27 मार्च 2018

दोहा गीत:

दोहा गीत 
*
जो अव्यक्त हो, 
व्यक्त है 
कण-कण में साकार 
काश! 
कभी हम पा सकें, 
उसके भी दीदार

कंकर-कंकर में वही 
शंकर कहते लोग 
संग हुआ है किस तरह 
मक्का में? संजोग 
जगत्पिता जो दयामय 
महाकाल शशिनाथ 
भूतनाथ कामारि वह 
भस्म लगाए माथ 
भोगी-योगी 
सनातन 
नाद वही ओंकार 
काश! 
कभी हम पा सकें, 
उसके भी दीदार

है अगम्य वह सुगम भी 
अवढरदानी ईश 
गरल गहे, अमृत लुटा 
भोला है जगदीश 
पुत्र न जो, उनका पिता 
उमानाथ गिरिजेश 
नगर न उसको सोहते 
रुचे वन्य परिवेश 
नीलकंठ 
नागेश हे! 
बसो ह्रदय-आगार 
काश! 
कभी हम पा सकें, 
उसके भी दीदार
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