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मंगलवार, 27 मार्च 2018

??? ॐ दोहा शतक नीता सैनी

दोहा शतक
नीता सैनी
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आत्मजा:
जीवन संगी:
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दोहा शतक
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शारद की आराधना, करें लगाकर ध्यान।
भक्ति करे जो मन लगा, वह पाए सुख-ज्ञान।।
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धन की लिप्सा त्याग दो, बनो विवेकी आज।
मैया की आराधना, से बनते हैं काज।।
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हंस विवेकी तुम बनो, करो देश में नाम।
जो ऐसा करते सदा, वे पाते आराम।।
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तृप्ति मिले साहित्य से, मां की कृपा विशेष।
कपट त्याग निर्मल रहो, प्रीति न हो निश्शेष।।
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माता को अर्पित करो, नित श्रद्धा के फूल।
हर पल माँ का ध्यान हो, घर में है मतभूल।।
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माँ से बढ़कर जानिए, नहीं जगत में आप।
कुछ भी कर संतान ले, उऋण न माँ से आप।।
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माता का दिल सिंधु है, जननी बहुत उदार।
जो माँ की सेवा करे, उसका हो उद्धार।।
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माँ गंगा की धार है, तन-मन करे पवित्र।
ममता से बढ़ कौन सा, इस दुनिया में इत्र।।
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करुणा की देवी कहो , माँ का दिल है मोम।
हित में वह संतान के, जीवन करती होम।।
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माँ को कष्ट न दीजिए, रखिए पल-पल मान।
जो माँ की सेवा करे, उसका ही उत्थान।।
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करती व्रत-उपवास माँ, सुखी रहे संतान।
माँ से बढ़कर कौन है, कोइ कहाँ महान।।
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माँ ममता की खान है, उसका रखिए ध्यान।
सबको जग में दीजिए, माँ-सेवा का ज्ञान।।
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मां के चरणों में दिखे, जिसको चारों धाम।
'नीता' भव से पार हो, वह जाता सुरधाम।।
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तिल के लड्डू नेह से, सबको बाँटो दौड़।
परिजन-पुरजन खुश रहें, मन-पंछी तज होड़।।
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खूब उड़े आकाश में, सबकी आज पतंग।
सबके मुख पर हो हँसी, मन में उठे उमंग।।
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करें तरक्की देश की, दुःख पर पाकर जीत।
सदा एकता-बीज बो, फसल उगाओ मीत।।
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सभी बड़ों की वंदना, छोटों को आशीष।
'नीता' पूजते देश में, त्यागी संत-मनीष।।
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नए साल पर क्या लिखूँ, क्यों न साध लूँ मौन।
सुख-दुःख वंटन करा रहा, देखूँ खुद आ कौन।।
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जीवन में उल्लास हो, सबका हो उत्कर्ष।
चाह यही नव वर्ष में, चहुँ दिस हो सुख-हर्ष।।
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सबको रोटी, घर मिले, उन्नति हो भरपूर।
सुफल मनोरथ हों सदा, सज्जन हों मशहूर।।
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छंद लिखें हम प्रीति के, गाएँ सुमधुर गीत।
विहँस मिलें नव साल में, कुछ अनुरागी मीत।।
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अपने देश- समाज का, हम नित करें विकास।
हर घर में सुख-चैन हो, करें देवगण वास।।
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कड़क चाय नित पीजिए, लेकर हरि का नाम।
चाय बिना आती नहीं, खुलती नींद न राम।।
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जब तक पति के हाथ की, चाय न मिले सप्रीत।
तब तक बिस्तर से उठूँ, नहीं सुहाती रीत।।
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सुबह चाय पतिदेव ला, दें तब खुलते नैन।
बिना चाय पी यदि उठूँ, हुए करेला बैन।।
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गाँव-शहर में चाय ही, स्वागत का पर्याय।
गोरों की जूठन रुची, हमको क्या अभिप्राय।।
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हर घर की है जरूरत, बंद न हो अध्याय।
पिएँ अतिथि को पिलाएँ, सुबह-रात तक चाय।।
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महिमा न्यारी चाय की, पी बन जाता मूड।।
रहा न जाए चाय बिन, भले मत मिले फ़ूड।।
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चाय पियो दोहे लिखो, सधते सारे काम।
चाय मिले यदि समय पर, जीवन ललित ललाम।।
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अदरक डालो कूटकर, लो फिर बढ़िया स्वाद।
हो प्रियतम के हाथ की, चाय रहे नित याद।।
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रंगोली घर- घर बने, रौनक देहरी- द्वार।
'नीता' हर त्योहार में, खुशियाँ मिलें हजार।
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बेटी करछुल हाथ की, सुख देती है खूब।
हरी-भरी हरदम रहे, जैसी होती दूब।।
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बेटी जब घर से गई, हुआ कलेजा चाक।
चैन न घर-बाहर मिले,अमन-चैन है ख़ाकi।।
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बेटी को कम आँकना, कभी न मेरे मीत।
वक्त पड़े पर साथ दे, क्या गर्मी, क्या शीत।।
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कभी झगड़ती लाडली, कभी जताती प्यार।
बेटी से रौनक रहे, आँगन, देहरी , द्वार।।
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जो कन्या को मारते, उनका सत्यानास।
जो कन्या को पूजते, वे सच्चे हरिदास।।
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दो कुल का बेटी करे, अपने गुण से नाम।
बेटी की रक्षा करें, रघुपति सीताराम।।
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बेटी किंचित भी कभी, कष्ट न देती शिष्ट।
सिर पर फेरूँ हाथ तो, सोती पाकर इष्ट।।
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मनचाहा घर- वर मिले, बेटी को हो हर्ष।
'नीता' की शुभ कामना, बेटी क उत्कर्ष।।
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हिंदी माता का करे,हर मानव सम्मान।
यह केवल भाषा नहीं, छंद-ज्ञान की खान।।
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जिव्हा पर हरदम रहे, प्रभु! हिंदी का वास।
इसका मीठापन सदा, सबको आए रास।।
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हिंदी का अपमान है, भारत का अपमान।
हिंदी को सम्मान दें, रखिए इसका मान।।
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हिंदी बिंदी हिंद की, मस्तक की ही शान।
झंकृत मन के तार कर, करे शांति का गान।।
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हिंदी पूरे विश्व में, बोली जाती खूब।
इसको गले लगाइए, 'नीता' सुख में डूब।।
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'भाई' लाकर दो मुझे, कहे सुता मासूम।
राखी बाँधूँगी उसे, ले बाँहों में चूम।।
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धन- दौलत कुछ भी नहीं, नहीं भेंट-उपहार।
केवल मुझको चाहिए, भाई तेरा प्यार।।
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भाई नित उन्नति करे, यही बहन की चाह।
सिखलाती हरदम चलो, पक्की-सच्ची राह।।
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कभी नहीं तुम भूलना, मेरे प्यारे वीर।
बहन दुलारी कह रही, भर नैनों में नीर।।
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राखी की शुभकामना, ढेर बधाई आज।
'नीता' कहती नेह से, रखना भैया लाज।।
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अपने देश- समाज का, रखें हमेशा मान।
जो टर्राए आपसे, ले लें उसकी जान।।
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नैतिकता कायम रहे, करिए चरित-विकास।
कोरे भाषण नीति के, तनिक न आते रास।।
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मानवता का लोप है, दानवता हुए सशक्त।
मानव, मानव का सतत, बहा रहा है रक्त।।
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भौतिकता की चाह में, मानव हिरण समान।
मृग-मरीचिका में फँसा, दुख पा देता जान।।
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हरि की सुधि बिसरा रहा, कैसे होगा पार।
बिना हरि-कृपा किस तरह, हो मानव-उद्धार।।
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खुशियाँ घर-परिवार में, करें हमेशा वास।
दोहा दे शुभकामना, कायम रहे सुवास।।
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कभी न विपदा-रोग हो, मधुमय हो अनुराग।
सब देवों की हो कृपा, द्वारे बजे विहाग।।
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जन्मदिवस शुभकामना, दूँ पुस्तक उपहार।
पौधा रोपो एक तुम, हो भू का सिंगार।
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सब मित्रों के नेह का, पड़ता बहुत प्रभाव।
नीता को बस चाहिए, अपनेपन का भाव।
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दीपक से बाती कहे, सत्य न जानें लोग।
जल-जलकर तो मैं मरी, सुयश तुम्हें संयोग।।
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दीप, तेल, बाती बिना, होता तम घनघोर।
तीनों के संयोग से, घर में होय अंजोर।।
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मेल-जोल, हित-त्याग से, सधते सारे काम।
दीपक से यह सीखिए, लेकर हरि का नाम।।
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धन की देवी धन लिए, घर-घर करें प्रवेश।
श्रम से उन्नति देश की, पनपें सभी प्रदेश।।
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मन कर मंगल कामना, जन हो मालामाल।
दुख-दारिद्र्य न शेष हो, भारत हो खुशहाल।।
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युगों-युगों से धो रहीं, गंगा मैया पाप।
निर्मल मन करतीं सदा, हरतीं पीड़ा-ताप।।
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गंगा-दर्शन के लिए, दौड़े आते लोग।
पूर्ण मनोरथ हो रहा, सुफल मिले संयोग।।
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बढ़ा प्रदूषण गंग में, स्वार्थ रहे सब साध।
भक्ति-भाव सच्चा नहीं, श्रद्धा नहीं अगाध।।
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मन मैला यदि आपका, तन धोना बेकार।
गंगा मां कहतीं यही, मन में हो न विकार।।
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मौसम है मधुमास का, मन में भरी उमंग।
अमिट छाप हँस छोड़ता, कुदरत का नव रंग।।
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फूल खिले हैं बाग़ में, चारों तरफ बहार।
मन को मन पुलकित रखो, कभी न माने हार।।
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भँवरे-तितली नाचते, कोयल गाती गीत।
मादक मौसम जलाए, कब आओगे मीत।।
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सरसों फूली खेत में, मन का हरे कलेश।
फगुआ सूना तुम बिना, आओ साजन देश।।
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खुशियों से जीवन भरे, रंगों का त्योहार।
कहीं नहीं दुख-दर्द हो, लगे भला संसार।
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सबको सुख की ही मिले, सदा यहाँ सौगात।
यही कामना देव से, हाथ जोड़ दिन- रात।।
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शांति सदा हो देश में, घूमे उन्नति-चक्र ।
पूर्ण रहे धन-धान्य से, भू न भाग्य हो वक्र।।
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रंग न फीका हो कभी, चटक गुलाबी-लाल ।
सतरंगी संसार हो, हर्षित सपने पाल।।
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भेद-भाव की कालिमा, हो जाए अति दूर।
ऐक्य-भाव का चंद्रमा, खूब बिखेरे नूर।।
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तोड़ो नाता कीच से, काजल-नैना आँज।
तन निर्मल कर जतन से, मन को तन्नक माँज।।
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साथी-संगी मिल गए, बना गेह-परिवार।
सद्विचार-साहित्य का, विस्तृत है संसार।।
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गीत, ग़ज़ल, कविता, कथा, नीता भाषा-ओज।
कथ्य,शिल्प, शैली सरस, सलिला सलिल सरोज।।
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माँ शारद की कृपा से, सुलभ ज्ञान-विज्ञान।
करे साधना जो सतत, होता वही सुजान।।
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सुंदर भाषा, भावयुत, हितकर लेखन फूल।
हों शारद-उद्यान में, मिटा भेद के शूल।।
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परसेवा-उपकार ही, हो मेरा पाथेय।
पार लगाओ पार्थ सम, या कर दो राधेय।।
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रच दूँ कविता प्यार की, और न कोई चाह।
दिखलाता है प्यार ही, नव जीवन की राह।।
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और नहीं कुछ चाहिए, दो- दो मीठे बोल।
प्यारे प्रियवर! प्रीति का, मीठा रस दो घोल।।
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नैन बावरे हो गए, तुमसे कर-कर प्रीति।
मुझको भाती ही नहीं, दुनियादारी रीति।।
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मूल्यवान मत दो मुझे, प्रिय! दो कुछ अनमोल।
'नीता' को अनुराग दो, प्रभु जी तुम दिल खोल।।
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गंग नहा मत मलिन कर, दर्शन कर कर जोड़।
आ! चल, कचरा उठाएँ, करें स्वच्छता-होड़।।
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सूर्यदेव को पूजकर, जल-अंजलि दो ढाल।
सौर ऊर्जा काम ले, चलो उठाकर भाल।।
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स्वागत में नव वर्ष के, वर्षा-जल ले रोक।
भू में नीचे उतारे, करो व्यवस्था टोक।।
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कविता बिन मुझको नहीं, मिले तनिक सुख-चैन।
डूबी रहती भाव में, लिखती हूँ दिन-रैन।। ९०
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आज बड़ा दिन है भला, खुशियों का त्योहार।
बाबा सांता क्लॉज जी, लाए हैं उपहार।।
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रौनक देखो शहर मे, सजा हुआ बाजार।
होना अब तो चाहिए, सबका मन गुलजार।।
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जन्म दिवस प्रभु यीशु का, धूमधाम चहुँ ओर।
हर दिन आए विश्व में, अमन -चैन की भोर।।
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