दोहे- कांता रॉय
1.
सुरा-पान ने कर दिया, तन का कैसा हाल
हड्डी का ढाँचा बचा, पिचके सुंदर गाल
2.
दीन भटकता फिर रहा, अस्पताल में रीस
खाने को रोटी नहीं, डॉक्टर माँगे फीस
3.
धूम्रपान कर, सुरा पी, करता खुद से द्वेष
अपनों का बैरी बना, नाहक करे कलेश
4.
वायु सोखती प्रदूषण, पानी सोखे कीच
मानव दुर्गुण सोखता, जीवन खींचमखींच
5.
देख रूपैया मनुज भी, मन बिहुँसाये आप
ज्यों कुत्ते के दिन फिरे, बने बाप के बाप
6.मृगतृष्णा जीवन-तृषा, कब पूरी हो आस?
जब तक तन में प्राण है, कब मिटती है प्यास??
7.पानी तन की चाह है, पानी जीवन-राह
पानी जीवन-सखा है, कौन गह सका थाह?
8.
सूखी धरती राम की, सूखा हरि का गाँव
पानी को मनु छल रहा, शेष न तरु की छाँव
9.
गली-गली में लग गई, हैंडपम्प -तस्वीर
बाहर कब तस्वीर से, आएगी तकदीर
10.
बोतल-पानी पिलाती, नदी पाट सरकार
आटा गीला हो रहा, मचता हाहाकार
11.
खोज रहे हर दिशा में, बूँद-बूँद हम नीर
टाल-तलैया पूरकर, बढ़ा रहे खुद पीर
12.
जीव-जीव में प्रभु बसे, मानव का है धर्म
दो अनाथ को आसरा, कर लो कुछ सत्कर्म
13.
देव पधारे महल में, करें आरती भक्त
देख दक्षिणा पुजारी, हुए अधिक अनुरक्त
14.
प्याला पीकर प्रेम का, मधुशाला हो देह
देख रही सुख नशे में, बिसरा मन का नेह
15.
करे आचरण दोगला, बन पाखंडी संत
मुँह में राम बगल रखे, छुरी बचाए कंत
16.
होली पर्व अबीर का, खेलें सब चहुँ ओर
काला रंग कलेश का, मत डालो बल-जोर
17.
फागुन मौसम प्रीत का, बहे बसंत बयार
पिचकारी ले हाथ में, प्रीतम है तैयार
18.
फागुन गाए ताल दे, नाचे मन का मोर
आया प्रियतम पाहुना, जिया धड़कता जोर
19.
लड़ जीवन-संग्राम नित, बिन भला बिन तीर
लड़ते-लड़ते जो जयी, वही सिकंदर वीर २०. मधुरम-मधुरम प्रेम है, जग-जीवन का सार चख ले बंदे प्रेम रस, शेष सभी निस्सार
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