एक कविता:
सीखते संज्ञा रहे...
*
सीखते संज्ञा रहे हम.
बन गये हैं सर्वनाम.
क्रिया कैसी?
क्या विशेषण?
कहाँ है कर्ता अनाम?
कर न पाये
साधना हम
वंदना ना प्रार्थना.
किरण आशा की लिये
करते रहे शब्द-अर्चना.
साथ सुषमा को लिये
पुष्पा रहे रचना कमल.
प्रेरणा देती रहें
शुभ कल्पना
आभा नवल.
विनीता आस्था
रही सम कांता
देती सुनाम.
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१३-७-२०११
#हिंदी_ब्लॉगिंग
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