मुक्तिका:
ज़ख्म कुरेदेंगे....
संजीव 'सलिल'
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ज़ख्म कुरेदोगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..
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छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..
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मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..
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फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..
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बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
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आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो, वरना कल से अनबन होगी..
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नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
१-७-२०१०
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