एक षट्पदी
आइये, सोचें-विचारें :
- संजीव 'सलिल'
*
जिन्हें हमारी फ़िक्र, उन्हें हम रहे रुलाते.
रोये उनके लिए, न जिनके मन हम भाते..
करते उनकी फ़िक्र, न जिनको फ़िक्र हमारी-
है अजीब, पर सत्य समझ-स्वीकार न पाते..
'सलिल' समझ सच को, बदलें हम खुद को फ़ौरन.
कभी नहीं से देर भली, कहते विद्वज्जन..
***
५-७-२०१०
#हिंदी_ब्लॉगिंग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें