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सोमवार, 17 जुलाई 2017

geet

एक रचना
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गाय
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गाय हमारी माता है
पूजो गैया को पूजो
*
पिता कहाँ है?, ज़िक्र नहीं
माता की कुछ फ़िक्र नहीं
सदा भाई से है लेना-
नहीं बहिन को कुछ देना
है निज मनमानी करना
कोई तो रस्तों सूझो
पूजो गैया को पूजो
*
गौरक्षक हम आप बने
लाठी जैसे खड़े-तने
मौका मिलते ही ठोंके-
बात किसी की नहीं सुनें
जबरा मारें रों न देंय
कार्य, न कारण तुम बूझो
पूजो गैया को पूजो
*
गैया को माना माता
बैल हो गया बाप है
अकल बैल सी हुई मुई
बात अक्ल की पाप है
सींग मारते जिस-तिस को
भागो-बचो रे! मत जूझो
पूजो गैया को पूजो
*
#दिव्यनर्मदा.कॉम
#हिंदी_ब्लॉगर 

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