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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आओ! देखें दुर्लभ चित्र:

समय-पृष्ठ पलटें :
समय के पन्नों को पलटकर कुछ अजाना, कुछ अबूझा, करें साझा ...
उपन्यास सम्राट 



सितम्बर1936 उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का रामकटोरा, बनारस स्थित घर में रोगशैय्या पर अंतिम चित्र। 'अज्ञेय' द्वारा इस चित्र को लेने के एक माह पश्चात प्रेमचंद का देहावसान हुआ।अज्ञेय की पहली कहानी 'अमर-वल्लरी' प्रेमचंद ने 5 अक्तूबर, 1932के  'जागरण' में  प्रकाशित की थी। अज्ञेय तब, अन्य क्रांतिकारियों के साथ, दिल्ली षड्यंत्र मुकदमे में जेल काट रहे थे, जहाँ से तीन साल बाद छूटे।
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संविधान निर्माता 
 
राष्ट्रकवि और राष्ट्रपति  

 
देशरत्न डॉ। राजेंद्र प्रसाद तत्कालीन राष्ट्रपति को 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रति भेंट करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर।
 

सबसे बाएंफणीश्वरनाथ रेणु, रामधारी सिंह दिनकर (वक्ता)। आभार: अखिलेश शर्मा, रांची। 
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सुभाषद्रोही या देशद्रोही?

 

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को विश्व युद्ध अपराधी के रूप में अंग्रेजों को सौंपने पर गाँधी, नेहरु, जिन्ना एकमत: भारत की एकमात्र विश्वस्नीय समाचार सेवा PTI द्वारा दिए समाचार के अनुसार नेताजी के लापता होने संबंधी दुर्घटना की जाँच हेतु गठित खोसला आयोग के समक्ष बयां देते हुए नेताजी के अंगरक्षक रहे उस्मान पटेल ने बताया कि मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना आज़ाद ने अंग्रेज जज से समझौता किया था की नेताजी के मिलने पर उन्हें अंग्रेजोन को सौंपा जायेगा।
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स्वतंत्रता का सच 


 

कृपया निम्न तथ्यों को ध्यान से पढ़िये:-
1. 1942 : ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन ब्रिटिश सरकार ने कुछ हफ्तों में कुचला।2. 1945 : ब्रिटेन ने विश्वयुद्ध में ‘विजयी’ देश के रूप सिंगापुर को वापस अपने कब्जे में लिया। उसका भारत से लेकर सिंगापुर तक जमे रहने का इरादा था। दिल्ली के ‘संसद भवन’ से लेकर अण्डमान के ‘सेल्यूलर जेल’ तक- हर निर्माण 500 से 1000 वर्षों तक सत्ता बनाये रखने के इरादे से किया गया था
3. 1945 - 1946 ब्रिटेन ने हड़बड़ी में भारत छोड़ने का निर्णय लिया? क्यों? क्या घटा इस बीच जिसने अंग्रेजों को पलायन करने पर मजबूर किया?
4. बचपन से सुने - 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल' को भुला कर सच जानें इस काल में ‘नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारण’ ही 1947   में आजादी मिली। विश्वास न हो नीचे दिए गए तथ्य देखें:
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ब्रिटिश संसद में विपक्षी सदस्य द्वारा प्रश्न पूछने पर कि ब्रिटेन भारत को क्यों छोड़ रहा है, ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली जवाब
दो विन्दुओं में देते हैं:
1. भारतीय मर्सिनरी (वेतनभोगी पेशेवर
सेना) ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति वफादार नहीं रही और
2. इंग्लैण्ड इस स्थिति में नहीं है कि वह अपनी खुद की सेना को इतने बड़े पैमाने पर संगठित कर सके कि वह भारत पर नियंत्रण रख सके।
अंग्रेजी इतिहासकार माईकल एडवर्ड के शब्दों में ब्रिटिश राज के अन्तिम दिनों का आकलन:
“भारत सरकार ने आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चलाकर भारतीय सेना के मनोबल को मजबूत बनाने की आशा की थी। इसने उल्टे अशांति पैदा कर दी- जवानों के मन में कुछ-कुछ शर्मिन्दगी पैदा होने लगी कि उन्होंने विदेशियों का साथ दिया। अगर सुभाषचन्द्र बोस और उनके आदमी सही थे- जैसाकि सारे देश ने माना कि वे सही थे भी- तो सेना के भारतीय जरूर गलत थे। भारत सरकार को धीरे-धीरे यह दीखने लगा कि ब्रिटिश राज की रीढ़- भारतीय सेना- अब भरोसे के लायक नहीं रही। सुभाष बोस का भूत, हैमलेट के पिता की तरह, लालकिले (जहाँ आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा चला) के कंगूरों पर चलने-फिरने लगा, और उनकी अचानक विराट बन गयी छवि ने उन बैठकों को बुरी तरह भयाक्रान्त कर दिया, जिनसे आजादी का रास्ता प्रशस्त होना था।”
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निष्कर्ष के रुप में यह कहा जा सकता है कि:-
1. अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर प्रमुख कारण यह था कि भारतीय थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों के मन में ब्रिटिश राजमुकुट के प्रति राजभक्ति में कमी आ गयी थी और- बिना राजभक्त भारतीय सैनिकों के- सिर्फ अँग्रेज सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
2. सैनिकों के मन में राजभक्ति में जो कमी आयी थी, उसके कारण थे- नेताजी का सैन्य अभियान, लालकिले में चला आजाद हिन्द सैनिकों पर मुकदमा और इन सैनिकों के प्रति भारतीय जनता की सहानुभूति।
3. अँग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान नहीं के बराबर रहा। --जय हिन्द ।
 आभार :- गौरी राय
 

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उन्नीस वर्ष में विश्व विजय:
 
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नेहरु - शास्त्री मूल्यांकन 
 
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सनातन सत्य 
 
 

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