फागुन
त्रिभंगी छंद:
संजीव 'सलिल'
*
ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot. in
त्रिभंगी छंद:
संजीव 'सलिल'
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ऋतु फागुन आये, मस्ती लाये, हर मन भाये, यह मौसम।
अमुआ बौराये, महुआ भाये, टेसू गाये, को मो सम।।
होलिका जलायें, फागें गायें, विधि-हर शारद-रमा मगन-
बौरा सँग गौरा, भूँजें होरा, डमरू बाजे, डिम डिम डम।।
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.
1 टिप्पणी:
Mahesh Dewedy yahoogroups.com
सुन्दर साहित्यिक फागुनी रचना हेतु बधाई संजीव jee.
महेश चन्द्र द्विवेदी
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