नव गीत:
कैसी नादानी??...
संजीव 'सलिल'
*
मानव तो करता है, निश-दिन मनमानी.
प्रकृति से छेड़-छाड़, घातक नादानी...
*
काट दिये जंगल,
दरकाये पहाड़.
नदियाँ भी दूषित कीं-
किया नहीं लाड़..
गलती को ले सुधार, कर मत शैतानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
पाट दिये ताल सभी
बना दीं इमारत.
धूल-धुंआ-शोर करे
प्रकृति को हताहत..
घायल ऋतु-चक्र हुआ, जो है लासानी...
प्रकृति से छेड़-छाड़, घातक नादानी...
*
पावस ही लाता है
हर्ष सुख हुलास.
हमने खुद नष्ट किया
अपना मधु-मास..
सूर्य तपे, कहे सुधर, बचा 'सलिल' पानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
कैसी नादानी??...
संजीव 'सलिल'
*
मानव तो करता है, निश-दिन मनमानी.
प्रकृति से छेड़-छाड़, घातक नादानी...
*
काट दिये जंगल,
दरकाये पहाड़.
नदियाँ भी दूषित कीं-
किया नहीं लाड़..
गलती को ले सुधार, कर मत शैतानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
पाट दिये ताल सभी
बना दीं इमारत.
धूल-धुंआ-शोर करे
प्रकृति को हताहत..
घायल ऋतु-चक्र हुआ, जो है लासानी...
प्रकृति से छेड़-छाड़, घातक नादानी...
*
पावस ही लाता है
हर्ष सुख हुलास.
हमने खुद नष्ट किया
अपना मधु-मास..
सूर्य तपे, कहे सुधर, बचा 'सलिल' पानी.
'रुको' कहे प्रकृति से कैसी नादानी??...
*
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