बाल कविता -
दादा जी ने मारी उस दिन,
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दादा जी की छींकसन्तोष कुमार सिंह
दादा जी ने मारी उस दिन,
बड़ी जोर की छींक।
चिन्टू, पिन्टू और बबली की,
निकल गई थी चीख।।बिल्ली के पंजों में जकड़ा,
चूहा भी झट छूटा।
दादी काँपी उनके सिर से,
घट भी गिर कर फूटा।।पगहा तोड़ भगा खूँटे से,
बँधा हुआ जो घोड़ा।
पिल्लों ने भी डर कर देखो,
पान दुग्ध का छोड़ा।।घर के सब सामान अचानक,
आपस में टकराये।
पर दादा निश्चिन्त बैठकर,
हुक्का पीते पाये।।
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ <ksantosh_45@yahoo.co.in> Web:http://bikhreswar. blogspot.com/
1 टिप्पणी:
मज़ेदार बाल कविता !
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