चित्र पर कविता:
१. एस.एन. शर्मा 'कमल'
विधि के हाथों खींची लकीरें
नहीं मिटी है नहीं मिटेंगी
लाख जतन कर लिखो भाल पर
तुम कितनी ही अपनी भाषा
होगा वही जो विधि रचि राखा
शेष बनेगी मात्र दुराशा
साधू संत फ़कीर सभी पर
हावी भाग्य लकीर रहेंगी
बलि ने घोर तपस्या की थी
पाने को गद्दी इन्द्रलोक की
छला गया बावन अंगुल से
मिली सजा पाताल भोग की
बस न चलेगा होनी पर कुछ
बात बनी बन कर बिगड़ेगी
कुंठित हुए कुलिश,गाण्डीव
योधा तकते रहे भ्रमित से
रहा अवध सिंहासन खाली
चौदह वर्ष नियति की गति से
भाग्य-रेख पढ़ सका न कोई
वह अबूझ ही बनी रहेगी
sn Sharma <ahutee@gmail.com>
_____________________________
२. संजीव 'सलिल'
कर्म प्रधान विश्व है,
बदलें चलो भाग्य की रेख ...
*
विधि जो जी सो चाहे लिख दे, करें न हम स्वीकार,
अपना भाग्य बनायेंगे हम, पथ के दावेदार।
मस्तक अपना, हाथ हमारे, घिसें हमीं चन्दन,
विधि-हरि-हर उतरेंगे भू पर, करें भक्त-वंदन।
गल्प नहीं है सत्य यही
तू देख सके तो देख ...
*
पानी की प्राचीर नहीं है मनुज स्वेद की धार,
तोड़ो कारा तोड़ो मंजिल आप करे मनुहार।
चन्दन कुंकुम तुलसी क्रिसमस गंग-जमुन सा मेल-
छिड़े राग दरबारी चुप रह जनगण देखे खेल।
भ्रान्ति-क्रांति का सुफल शांति हो,
मनुज भाल की रेख…
*
है मानस का हंस, नहीं मृत्युंजय मानव-देह,
सबहिं नचावत राम गुसाईं, तनिक नहीं संदेह।
प्रेमाश्रम हो जीवन, घर हो भू-सारा आकाश,
सतत कर्म कर काट सकेंगे मोह-जाल का पाश।
कर्म-कुंडली में कर अंकित
मानव भावी लेख ...
__________________
पथ के दावेदार, उपन्यास, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय
पानी की प्राचीर, उपन्यास, रामदरस मिश्र
तोड़ो कारा तोड़ो, उपन्यास, नरेन्द्र कोहली
राग दरबारी, उपन्यास, श्रीलाल शुक्ल
मानस का हंस, उपन्यास, अमृतलाल नागर
मृत्युंजय, उपन्यास, शिवाजी सावंत
सबहिं नचावत राम गुसाईं, उपन्यास, भगवतीचरण वर्मा
प्रेमाश्रम, उपन्यास, मुंशी प्रेमचंद
सारा आकाश, उपन्यास, राजेन्द्र यादव
१. एस.एन. शर्मा 'कमल'
विधि के हाथों खींची लकीरें
नहीं मिटी है नहीं मिटेंगी
लाख जतन कर लिखो भाल पर
तुम कितनी ही अपनी भाषा
होगा वही जो विधि रचि राखा
शेष बनेगी मात्र दुराशा
साधू संत फ़कीर सभी पर
हावी भाग्य लकीर रहेंगी
बलि ने घोर तपस्या की थी
पाने को गद्दी इन्द्रलोक की
छला गया बावन अंगुल से
मिली सजा पाताल भोग की
बस न चलेगा होनी पर कुछ
बात बनी बन कर बिगड़ेगी
कुंठित हुए कुलिश,गाण्डीव
योधा तकते रहे भ्रमित से
रहा अवध सिंहासन खाली
चौदह वर्ष नियति की गति से
भाग्य-रेख पढ़ सका न कोई
वह अबूझ ही बनी रहेगी
sn Sharma <ahutee@gmail.com>
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२. संजीव 'सलिल'
कर्म प्रधान विश्व है,
बदलें चलो भाग्य की रेख ...
*
विधि जो जी सो चाहे लिख दे, करें न हम स्वीकार,
अपना भाग्य बनायेंगे हम, पथ के दावेदार।
मस्तक अपना, हाथ हमारे, घिसें हमीं चन्दन,
विधि-हरि-हर उतरेंगे भू पर, करें भक्त-वंदन।
गल्प नहीं है सत्य यही
तू देख सके तो देख ...
*
पानी की प्राचीर नहीं है मनुज स्वेद की धार,
तोड़ो कारा तोड़ो मंजिल आप करे मनुहार।
चन्दन कुंकुम तुलसी क्रिसमस गंग-जमुन सा मेल-
छिड़े राग दरबारी चुप रह जनगण देखे खेल।
भ्रान्ति-क्रांति का सुफल शांति हो,
मनुज भाल की रेख…
*
है मानस का हंस, नहीं मृत्युंजय मानव-देह,
सबहिं नचावत राम गुसाईं, तनिक नहीं संदेह।
प्रेमाश्रम हो जीवन, घर हो भू-सारा आकाश,
सतत कर्म कर काट सकेंगे मोह-जाल का पाश।
कर्म-कुंडली में कर अंकित
मानव भावी लेख ...
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पथ के दावेदार, उपन्यास, शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय
पानी की प्राचीर, उपन्यास, रामदरस मिश्र
तोड़ो कारा तोड़ो, उपन्यास, नरेन्द्र कोहली
राग दरबारी, उपन्यास, श्रीलाल शुक्ल
मानस का हंस, उपन्यास, अमृतलाल नागर
मृत्युंजय, उपन्यास, शिवाजी सावंत
सबहिं नचावत राम गुसाईं, उपन्यास, भगवतीचरण वर्मा
प्रेमाश्रम, उपन्यास, मुंशी प्रेमचंद
सारा आकाश, उपन्यास, राजेन्द्र यादव
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