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रविवार, 17 मार्च 2013

एक ग़ज़ल : कोई नदी जो उनके......... आनन्द पाठक






एक ग़ज़ल : 
कोई नदी जो उनके.........
आनन्द पाठक
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कोई नदी जो उनके घर से गुज़र गई है
चढ़ती हुई जवानी पल में उतर गई है
 
बँगले की क्यारियों में पानी तमाम पानी
प्यासों की बस्तियों में सूखी नहर गई है
 
परियोजना तो वैसे हिमखण्ड की तरह थी
पिघली तो भाप बन कर जाने किधर गई है
 
हर बूँद बूँद तरसी मेरी तिश्नगी लबों की
आई लहर तो उनके आँगन ठहर गई है
 
"छमिया’ से पूछना था ,थाने बुला लिए थे
’साहब" से पूछना है ,सरकार घर गई है
 
वो आम आदमी है हर रोज़ लुट रहा है
क्या पास में है उसके सरकार डर गई है !
 
ख़ामोश हो खड़े यूँ क्या सोचते हो "आनन’?
क्योंकर नहीं गये तुम दुनिया जिधर गई है ?
 anand pathak akpathak317@yahoo.co.in

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