रचना - प्रति रचना:
रचना :
रहस्य
एस.एन.शर्मा
*सुमुखि तुम कौन !
निमन्त्रण देती रहतीं मौन
उदयांचल से बाल किरण तुम
उतर धरा के वक्षस्थल पर
आलिंगन भर थपकी देकर
चूम चूम सरसिज के अधर
नित्य नवल अभियान लिए
फैलातीं उजास तम रौंद
सुमुखि तुम कौन !
नए प्रात की अरुणाई सी
रवि प्रकाश की अगुवाई सी
सारा जग आलोकित करतीं
चढ़े दिवस की तरूणाई सी
सम्पूर्ण प्रकृति की छाती पर
छाईं बन सत्ता सार्वभौम
सुमुखि तुम कौन !
सांध्य गगन के स्वर्णिम दर्पण
में होतीं प्रतिबिंबित तुम
अस्ताचल के तिमिरांचल में
फिर विलीन हो जातीं तुम
खो कर तुम्हें रात भर ढरता
ओसकणो में विरही व्योम
सुमुखि तुम कौन
-------------------------------------
प्रति रचना :
सुमुखी तुम कौन…?
संजीव 'सलिल'
*
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
वातायन से शयन कक्ष में घुस लेती हो झाँक।
तम पर उजयारे की छवि अनदेखी देतीं टाँक ।।
रवि-प्रेयसी या प्रीत-संदेशा लाईं भू के नाम-
सलिल-लहरियों में अनदेखे चित्र रही हो आँक ।
पूछ रहा है पवन न उत्तर दे रहती हो मौन.
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
शीत ग्रीष्म में परिवर्तित हो पा तेरा सत्संग।
आलस-निद्रा दूर भगा दे, मन में जगा उमंग।।
स्वागतरत पंछी कलरव कर गायें प्रभाती मीत-
कहीं नहीं सब कहीं दिखे तू अजब-अनूठा ढंग।।
सखी नर्मदा, नील, अमेजन, टेम्स, नाइजर दौन
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
प्राची से प्रगटीं पश्चिम में होती कहाँ विलीन?
बिना तुम्हारे अम्बर लगता बेचारा श्रीहीन।।
गाल गुलाबी रतनारे नयनों की कहीं न समता-
हर दिन लगतीं नई नवेली संग कैसे प्राचीन??
कौन देश में वास तुम्हा?, कहाँ बनाया भौन
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
रचना :
रहस्य
एस.एन.शर्मा
*सुमुखि तुम कौन !
निमन्त्रण देती रहतीं मौन
उदयांचल से बाल किरण तुम
उतर धरा के वक्षस्थल पर
आलिंगन भर थपकी देकर
चूम चूम सरसिज के अधर
नित्य नवल अभियान लिए
फैलातीं उजास तम रौंद
सुमुखि तुम कौन !
नए प्रात की अरुणाई सी
रवि प्रकाश की अगुवाई सी
सारा जग आलोकित करतीं
चढ़े दिवस की तरूणाई सी
सम्पूर्ण प्रकृति की छाती पर
छाईं बन सत्ता सार्वभौम
सुमुखि तुम कौन !
सांध्य गगन के स्वर्णिम दर्पण
में होतीं प्रतिबिंबित तुम
अस्ताचल के तिमिरांचल में
फिर विलीन हो जातीं तुम
खो कर तुम्हें रात भर ढरता
ओसकणो में विरही व्योम
सुमुखि तुम कौन
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प्रति रचना :
सुमुखी तुम कौन…?
संजीव 'सलिल'
*
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
वातायन से शयन कक्ष में घुस लेती हो झाँक।
तम पर उजयारे की छवि अनदेखी देतीं टाँक ।।
रवि-प्रेयसी या प्रीत-संदेशा लाईं भू के नाम-
सलिल-लहरियों में अनदेखे चित्र रही हो आँक ।
पूछ रहा है पवन न उत्तर दे रहती हो मौन.
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
शीत ग्रीष्म में परिवर्तित हो पा तेरा सत्संग।
आलस-निद्रा दूर भगा दे, मन में जगा उमंग।।
स्वागतरत पंछी कलरव कर गायें प्रभाती मीत-
कहीं नहीं सब कहीं दिखे तू अजब-अनूठा ढंग।।
सखी नर्मदा, नील, अमेजन, टेम्स, नाइजर दौन
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
प्राची से प्रगटीं पश्चिम में होती कहाँ विलीन?
बिना तुम्हारे अम्बर लगता बेचारा श्रीहीन।।
गाल गुलाबी रतनारे नयनों की कहीं न समता-
हर दिन लगतीं नई नवेली संग कैसे प्राचीन??
कौन देश में वास तुम्हा?, कहाँ बनाया भौन
सुमुखी तुम कौन…?
सुमुखी तुम कौन…?
*
17 टिप्पणियां:
Madhu Gupta kavyadhara
आ. आचार्य जी व दादा
अभी अभी आप दोनों की
"सुमुखियों से मुलाक़ात हुई ,, दोनों की कल्पनाओं की उड़ान साकार हुई ,ज़रा संभल के रहना , टकरा गई तो ------------ ? कुछ अघटित ना हों जाए..
दादा , अब आप अपना विशेष ध्यान रखना
मधु
बहुत मोहक रचना आप दोनों की
मधु
Santosh Bhauwala yahoogroups.com
आदरणीय भैया कमल जी और सलिल जी
आप दोनों की सुमुखि हमें भी बहुत अच्छी लगी। गर कभी मिल जाए तो हमें भी मिलवा दीजियेगा
अति सुंदर शब्द चयन और शिल्प! आप दोनों की सृजन क्षमता को नमन!
सादर संतोष भाऊवाला
Indira Pratap yahoogroups.com
वाह संजीव भाई वाह,जुगल बंदी, को घटिके --------------दिद्दा
Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
दादा ,सुन्दर रहस्य में दूब कर मोटी खोजने जैसी , दादा अब एक और तार सप्तक निकलना चाहिए | प्रकृति का सुन्दर चित्रण , नमन नमन | बहिन इंदिरा
Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ. दादा एवं सलिल जी,
सुमुखियों ने जकड़ लिया आपको,
दिद्दा ने पकड़ लिया आपको
क्यों मधुदी---संजीव जी का कैसा पक्ष?
आखिर आपका क्या है लक्ष्य?
बताइए तो-----!!!!!!!!!!!!!!!!
सस्नेह
प्रणव
Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आदरणीय दादा एवं संजीव भाई , कल आप दोनों की रहस्यमई कविताओं ( सुमुखी ) पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाई , कारण स्पष्ट है , उस रहस्य पर से पर्दा भी तो उठाना था ,इसलिए निकल पड़ी ढूँढ़ने | और वही हुआ जिन खोजा तिन पाइयां आपकी दोनों सुमुखियों ने मेरे सामने अपने अवगुण्ठन खोल दिए | | रात लगभग ९ बजे किसी से बात करने घर से बाहर निकली तो एक इतना रहस्यमई नजारा मेरे सामने था लगा कहीं यही तो आप लोगों कि सुमुखियाँ नहीं हैं ? मेरे घर के सामने एक बड़ा सा पार्क है जिसमें बड़े बड़े पेड़ लगे हुए हैं | कल रात उस पार्क में शादी का फंक्शन था ,पार्क का मध्य भाग लाइटों से जगमगा रहा था, उस जगमगाहट और मेरे घर के बीच वह पेड़ अद्भुद कांति लिए पांच मीटर पर खड़ा था | नई मुलायम नन्हीं पत्तियों के बीच से छनकर आता प्रकाश उन पत्तियों को एक अतीन्द्रिय चमक प्रदान कर रहा था और उस पेड़ के पीछे गहरा सुरमई आकाश का वितान मुझे भी एक अलौकिक जगत में ले गया | अद्भुद दृश्य ! काश ! आप भी उस दृश्य को देखते | हो सकता है कभी मेरी कलम उठे और वह दृश्य कविता के रूप में आपको दिखा सकूँ | पता नहीं कब | बहन इंदिरा
Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com
वाह ! री किरण ,
चितेरे की पकड़ में आ गईं , बधाई
achal verma ekavita
मैं तो किरण कहूँ सुमुखी को
यदि उसको भावे
हर रवि शशि से उपज
हमारे पास चली आये ॥
लहरों की गति रोक
सलिल को ऐसा देती रंग
जब भी दॄष्टि पडे उस पर
हो जाय हृदय यह दंग ॥
अचल भी तब चलने लग जाय़
देख मन ही मन ये मुसकाए॥
deepti gupta yahoogroups.com
आदरणीय दादा ,
'रहस्य'......इस सुकुमार- सलोनी कविता में आदि से अंत तक बसी आपकी 'सुमुखी' ने बड़ा सम्मोहित किया ! पहली पंक्ति पढ़ते ही 'छायावादी' कविता की सुकुमारता, स्वप्निल स्पर्श, रागात्मकता का स्मरण हो आया ! मन को बंधने वाली इस अतिसुन्दर कविता के लिए ढेर सराहना स्वीकारें !
आपकी कविता पर संजीव जी की 'काव्यमयी' मनोहारी प्रतिक्रिया और भी लुभावनी लगी ! संजीव जी ने बड़े ही कौशल से सुमुखी प्रकृति का हृदयहारी चित्रण कर, आपकी कविता के सौंदर्य को द्विगुणित कर दिया !
संजीव जी, शब्द और कल्पना के कलात्मक अलपेट में लिपटी आपकी प्रस्तुति निसंदेह एक तिलस्म जगाती है .....,
आप दोनों की रचनाओं के लिए अतिशय मधुर अनुभूति एवं साधुवाद के साथ,
सादर ,
दीप्ति
sn Sharma
आ० आचार्य जी;
अति सुन्दर -
कर गईं पंक्तियाँ आपकी मुग्ध मन / आशु कवि की सजग लेखिनी को नमन ।
एक शंका है कि मैंने संबोधन शब्द ' सुमुखि ' का प्रयोग किया था । सुमुखी के स्थान पर संबोधन
में क्या सुमुखि ! कहना अशुद्ध होगा । ' सुमुखी ' के प्रयोग से मुझे लय टूटती सी लगी । कुछ याद
पड़ता है अन्यत्र प्रसिद्ध कावियों द्वारा संबोधन में सुमुखि का प्रयोग किया गया है । कृपया भ्रम दूर करें ।
सादर
कमल
दादा
वन्दे.
'सुमुखि' ही सही है. टंकण-त्रुटि और असावधानी हेतु क्षमा-प्रार्थी हूँ. दीप्ति जी से 'सुमुखि' को सुधारने हेतु निवेदन है.
deepti gupta द्वारा yahoogroups.com
8:40 pm (0 मिनट पहले)
kavyadhara
आदरणीय संजीव जी,
आपने अच्छा ध्यान दिलाया ! क्योंकि आप दोनों की कविताओं में सुमुखी - इस शब्द के दोनों रूप सही हैं !
सही शब्द - सुमुखी ( वि.स्त्रीलिंग, संस्कृत) है ! आपने कविता में सही शब्द लिखा है !
अपने शब्दकोष में भी आप देख सकते हैं , ये ही शब्द मिलेगा यानी बड़ी 'ई' वाला - सुमुखी
लेकिन दूसरा पहलू भी हमें देखना चाहिए ----------
दादा का लिखा हुआ- सुमुखि भी कविता में सही है! क्योंकि वे सुन्दर मुख वाली को 'संबोधन' कर रहे हैं- उससे पूछ रहे हैं- तुम कौन?
अतेव संबोधन में अक्सर छोटी 'इ' का प्रयोग चल जाता है! परन्तु जब संबोधन से इतर हम इस शब्द को लिखेगें तो, सुमुखी ही शुद्ध माना जाएगा! संबोधन में आप दोनों रूपो का प्रयोग कर सकते हैं! सादर,
दीप्ति
दीप्ति जी
इस चर्चा को सार्थक बनाने हेतु आभार. जिस तरह 'रूप' से 'सुरूपा', 'कन्या' से 'सुकन्या' बना क्या वैसे ही मुख से सुमुखा भी बन सकता है?
क्या 'सुमुखी' और 'सुमुखि' की तरह 'सुमुखा' भी सही होगा?
क्या 'सुमुखि', सुमुखी' और 'सुमुखा' तीनों 'स्त्रीलिंग' होंगे? फिर इस अर्थ में पुल्लिंग क्या होगा?
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
ने लिखा:
आदरणीय संजीव जी,
आपने अच्छा ध्यान दिलाया! क्योंकि आप दोनों की कविताओं में सुमुखी-इस शब्द के दोनों रूप सही हैं!
सही शब्द-सुमुखी(वि.स्त्रीलिंग, संस्कृत) है ! आपने कविता में सही शब्द लिखा है !
अपने शब्दकोष में भी आप देख सकते हैं, ये ही शब्द मिलेगा यानी बड़ी 'ई' वाला - सुमुखी
लेकिन दूसरा पहलू भी हमें देखना चाहिए ----------
दादा का लिखा हुआ - सुमुखि भी कविता में सही है ! क्योंकि वे सुन्दर मुख वाली को 'संबोधन' कर रहे हैं - उससे पूछ रहे हैं - तुम कौन ?
अतेव संबोधन में अक्सर छोटी 'इ' का प्रयोग चल जाता है ! परन्तु जब संबोधन से इतर हम इस शब्द को लिखेगें तो, सुमुखी ही शुद्ध माना जाएगा ! संबोधन में आप दोनों रूपो का प्रयोग कर सकते हैं !
सादर,
दीप्ति
दीप्ति जी
इस चर्चा को सार्थक बनाने हेतु आभार. जिस तरह 'रूप' से 'सुरूपा', 'कन्या' से 'सुकन्या' बना क्या वैसे ही मुख से सुमुखा भी बन सकता है?
क्या 'सुमुखी' और 'सुमुखि' की तरह 'सुमुखा' भी सही होगा?
क्या 'सुमुखि', सुमुखी' और 'सुमुखा' तीनों 'स्त्रीलिंग' होंगे? फिर इस अर्थ में पुल्लिंग क्या होगा?
deepti gupta द्वारा yahoogroups.com
संजीव जी,
आपने एक बार फिर सार्थक जिज्ञासा अभिव्यक्त की !
सु (उपसर्ग) से = सुमुखा (वि. स्त्री. सं.) शब्द भी वैयाकरणों ने रचा है और शब्दकोष में है ! सुमुखा के समरूप अन्य आकारांत स्त्रीलिंग शब्द भी है ! यथा -
सुलोचना, सुनयना............... सुमुखा : स्त्रीलिंग (सुन्दर मुखड़े वाली)
इसका पुल्लिंग रूप है - सुमुख : पुल्लिंग (सुन्दर मुखड़े वाला)
जैसे राम के लिए प्रयुक्त विशेषण हैं - सुवदन (सुन्दर चेहरे वाले), सुमेध (सुन्दर बुद्धि वाला)
सुलोचन, सुनयन, सुनेत्र, सुकेश, आदि आदि ............
सादर,
दीप्ति
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
प्रिय इंदिरा जी,
प्रकृति अनेक रहस्यों से भरी पडी है । रहस्य से पर्दा उठ जाय तो फिर वह
रहस्य कैसा । हम उन रहस्यमय दृश्यों को देखते हैं और शब्द चित्र बनाते हैं
पर मूल रहस्य को उद्घाटित नहीं कर पाते । देख कर जो अनुभूति होती है उसे
शब्दों में उतार पाना असम्भव है पर एक संकेत भर दे सकते हैं और भावुक
मन इन संकेतों से ही उस दृश्य का अपनी सामर्थ्य के अनुसार अनुभव कर
पाता है ।
दादा
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