गीत:
झाँक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
झाँक रही है...
संजीव 'सलिल'
*
झाँक रही है
खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
आँक रही
अल्पना कल्पना
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
*
6 टिप्पणियां:
Laxman Prasad Ladiwala
बहुत सुन्दर रचना के साथ नव वर्ष का आगाज, हार्दिक बधाई के साथ स्वागत नव वर्ष का श्री संजीव सलिल जी
झाँक रही है खोल झरोखा
नए वर्ष में धूप सुबह की.
टाँक रही हैअपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की...
नव वर्ष की हार्दिक शुभ मंगल कामनाए
Ashok Kumar Raktale
परम आदरणीय सलिल जी सादर, सुन्दर नव वर्ष का यह गीत. गीत और नव वर्ष पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
Saurabh Pandey
कॉफ़ी का प्याला थामे
अखबार आज का.
अधिक मूल से मोह पीला
क्यों कहो ब्याज का?
लिए बांह में बांह
डाह तज, छह पल रही-
कशिश न कोशिश की कम हो
है सबक आज का.
इस नवगीत के लिए ढेरों बधाई, आदरणीय आचार्यजी. अंग्रेज़ी नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर आपका उद्बोधन सुखकारी लगा.
सादर
Dr.Prachi Singh
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना..
.....................बहुत कोमल शब्द , ह्रदय स्पर्शी, वाह!
बहुत सुन्दर शाब्दिक चित्रण नव वर्ष की पहली सुबह का
सादर बधाई इस नवगीत पर.
प्राची जी, सौरभ जी
नव वर्ष की शुभ कामनाएं. गीत को सराहने के लिए हार्दिक आभार.
MAHIMA SHREE
चुन-चुन करती चिड़ियों के संग
कमरे में आ.
बिन बोले बोले मुझसे
उठ! गीत गुनगुना.
सपने देखे बहुत, करे
साकार न क्यों तू?
मुश्किल से मत डर, ले
उनको बना झुनझुना.
टाँक रही है
अपने सपने
नए वर्ष में धूप सुबह की... ...
आदरणीय संजीव सर नमस्कार ..बहुत ही सुंदर गीत ..
नववर्ष की आपको बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं
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