व्यंग्य रचना:
हो गया इंसां कमीना...
संजीव 'सलिल'
*
गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.
दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..
कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.
आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..
जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.
आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'
कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.
आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'
'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.
मांग हो अब जानवर खुद को नहीं इंसां बोले.
थे सभी सहमत, न अब इन्सान को मुंह लगायेंगे.
हो गया लुच्चा कमीना, आदमी को बताएँगे..
*****
हो गया इंसां कमीना...
संजीव 'सलिल'
*
गली थी सुनसान, कुतिया एक थी जाती अकेली.
दिखे कुछ कुत्ते, सहम संकुचा गठी थी वह नवेली..
कहा कुत्तों ने: 'न डरिए, श्वान हैं इंसां नहीं हम.
आंच इज्जत पर न आयेगी, भरोसा रखें मैडम..
जाइए चाहे जहाँ सर उठा, है खतरा न कोई.
आदमी से दूर रहिए, शराफत उसने है खोई..'
कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.
आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'
'ठीक कहती हो बहिन तुम, जानवर कुछ तुरत बोले.
मांग हो अब जानवर खुद को नहीं इंसां बोले.
थे सभी सहमत, न अब इन्सान को मुंह लगायेंगे.
हो गया लुच्चा कमीना, आदमी को बताएँगे..
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15 टिप्पणियां:
अरुन शर्मा "अनन्त"
आदरणीय सलिल सर!
इंसान के अस्तित्व पर बेहद सटीक व्यंग कसा है, अब यह सत्यता के रूप में दिखाई देने लगी है, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
Laxman Prasad Ladiwala
इंसान पर व्यंग करती रचना ने भी हमें शर्मसार होने को मजबूर कर दिया
सटी व्यंग के लिए बधाई आदरणीय संजीव वर्मा सलिल जी
shalini kaushik
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति
Ashok Kumar Raktale
कहा कुतिया ने:'करें हडताल लेकर एक नारा.
आदमी खुद को कहे कुत्ता नहीं हमको गवारा..'..........जान ले अब इंसान.
सुन्दर रचना आद.सलिल जी
Satyanarayan Shivram Singh
आदरणीय सलिलजी
इस रचना के माध्यम से आपने इक्कीसवी सदी के इन्सान पर करारा व्यंग कसा है बहुत बहुत धन्यवाद
seema agrawal
सभ्यता और संस्कार का अंतर स्वयंम इंसान ने अपनी करतूतों समाप्त कर दिया है .........सत्य को सत्य कहती रचना
Saurabh Pandey
संस्कार हम शिक्षितों के बीच हास्य-परिहास की चीज़ बनकर रह गया है. तबतक कोई उम्मीद नहीं जबतक हम पिस्सु-पिल्लुओं की ग़लीज़ ज़िन्दग़ी न जीने लगें. इसके बाद ही कुछ उम्मीद जगती है. जब देश ग्लानि और क्रोध में धधक रहा है, इसी दिल्ली में घिनौनी हरकतों की एक बार फिर से वारदात हुई है. बंगाल से रोने की आवाज़ आयी है.
एक अच्छी व्यंग्य रचना के लिए सादर बधाई.
अनंत जी, लक्ष्मण जी, शालिनी जी, अशोक जी, सत्य नारायण जी, सीमा जी, सौरभ जी
मेरी शर्म और पीड़ा को साँझा करने के लिए आपका आभार.
Dr.Prachi Singh
इंसान के निकृष्टतम स्वरुप पर अपनी वेदना को सुगढ़ता के साथ व्यंगबद्ध करने के लिए हार्दिक बधाई. सादर.
shubhra sharma
आपकी इस व्यंग काव्य रचना ने इन्सान को अपने अन्दर झाकने पर मजबूर करता है,बहुत-बहुत बधाई
प्राची जी, शुभ्रा जी आपकी गुणग्राहकता को नमन.
Pranava Bharti
आ सलिल जी ,
आदमी और पशु का अच्छा चित्रण किया है ।
साधुवाद
प्रणव
Mahesh Dewedy
वाह .
महेश चन्द्र द्विवेदी
- kusumvir@gmail.com
आदरणीय सलिल जी,
आपने बिलकुल सही लिखा है l
कुछ वहशी आदमी जानवरों से भी बदतर हो गए हैं l
सादर,
कुसुम वीर
dks poet
आदरणीय सलिल जी,
सटीक व्यंग्य। बधाई स्वीकारें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन
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