भोजपुरी के संग: दोहे के रंग
संजीव 'सलिल'
*
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***************************************
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
संजीव 'सलिल'
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भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
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अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
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कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
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रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
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पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
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हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
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कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
7 टिप्पणियां:
Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com
आ संजीव जी,
भोजपुरी में भी पारंगत। बधाई
मैं तो अपना वायदा भी नहीं पूरा कर पा रही हूँ क्योंकि मुझे कुछ मित्रों से चर्चा करनी होगी, जिसके लिए समय बिलकुल आज्ञा नहीं दे पा रहा।
किसी न किसी प्रकार पढ़ तो लेती हूँ परन्तु प्रतिक्रिया हेतु समय नहीं निकल पा रहा है।
'हाथ करेजा पे धरइल' बहुत अच्छा लगा---------------------वास्तविक!
Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
संजीव भाई , मान गए ,भोज पुरी को भी अपनी शरण में ले लिया | भारतीय भाषाओँ को सम्मान मिलना ही चाहिए | दिद्दा
deepti gupta द्वारा yahoogroups.com
आदरणीय संजीव जी.
बहुत मीठी रचना!
अनन्य सराहना के साथ,
सादर,
दीप्ति
sanjiv verma salil
kavyadhara
दिद्दा !
मेरी ऐसी aऔकात कहाँ ...भोजपुरी की शरण में अपना अज्ञान कम करने का प्रयास किया है।
dheepti ji, pranav ji आपका आभार शत-शत
- madhuvmsd@gmail.com
आ. संजीव जी
आज आपकी पूर्वी लहजे के दोहे पढ़े और पहले उर्दू की नज्म , सभी भाषायों में आप लिखते है और कितना सुन्दर कहते है माना की बहुत से उर्दू के लफ्ज़ समझ नही आते परन्तु लुत्फ़ उठा लेती हूँ भाव तो समझ आ जाता है .
जख्म होते है दर्द उठता है , और दर्द जुंबा का मोहताज़ नही
ढ़ेरों दाद क़ुबूल करें
मधु
Kanu Vankoti
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
भोजपुरी में भी आपको महारथ हासिल है ....
ढेर मुबारकबाद ,
कनु
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