एक ग़ज़ल :
वो आम आदमी है....
आनंद पाठक
वो आम आदमी है , ज़ेर-ए-नज़र नहीं है
उसको भी सब पता है ,वो बेख़बर नहीं है
कैसे यकीन कर लूं , तू मोतबर नहीं है
अब तेरी रहनुमाई, उम्मीदबर नहीं है
गो सुब्ह हुई तो लेकिन ये वो सहर नहीं है
फिर क्या हुआ कि उसमें अब वो शरर नहीं है
दुनिया किधर चली है तुझको ख़बर नहीं है
ये मोजिज़ा है शायद ,मेरा हुनर नहीं है
मैं जानता हूँ तेरी ये रहगुज़र नहीं है
इस सच के रास्ते का यां हम सफ़र नहीं है
-आनन्द.पाठक
ज़े-ए-नज़र = सामने ,focus में
मोतबर=विश्वसनीय,
मीर-ए-कारवां = यात्रा का नायक
शरर= चिंगारी
ख्वाविंदा= सुसुप्त ,सोया हुआ
मुफ़लिसी= गरीबी ,अभाव,तंगी
मोजिज़ा=दैविक चमत्कार
यां=यहाँ
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