नवगीत: न्याय चाहिये - ओम प्रकाश तिवारी * महामहिम जी, न्याय चाहिए लाठी-गोली पुलिस की टोली नेताओं की मीठी बोली पानी की वो तेज फुहारें आँसू गैस खून की होली ऐसे जुल्म जबर्दस्ती का अब हमको पर्याय चाहिए कभी कोख में मरना पड़ता कभी-खाप-को-सुनना-पड़ता महानगर की सड़कों पर भी डर-डर के है चलना पड़ता घिसे पिटे पाठों से हटकर एक नया अध्याय चाहिए करके जुल्म छूटते कामी मिलती है हमको बदनामी लाचारी कानून दिखाए लोग निकालें मेरी खामी बहुत हुई असहाय व्यवस्था अब तो कोई उपाय चाहिए ***** | |
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 30 दिसंबर 2012
नवगीत: न्याय चाहिये - ओम प्रकाश तिवारी
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om prakash tiwari
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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