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शनिवार, 10 अप्रैल 2010

नवगीत: करो बुवाई... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
करो बुवाई...
संजीव 'सलिल'
*

खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
ऊसर-बंजर जमीं कड़ी है.
मँहगाई जी-जाल बड़ी है.
सच मुश्किल की आई घड़ी है.
नहीं पीर की कोई जडी है.
अब कोशिश की
हो पहुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
उगा खरपतवार कंटीला.
महका महुआ मदिर नशीला.
हुआ भोथरा कोशिश-कीला.
श्रम से कर धरती को गीला.
मिलकर गले
हँसो सब भाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
मत अपनी धरती को भूलो.
जड़ें जमीन हों तो नभ छूलो.
स्नेह-'सलिल' ले-देकर फूलो.
पेंगें भर-भर झूला झूलो.
घर-घर चैती
पड़े सुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari : ने कहा…

बढ़िया..मौसम के अनुरुप रचना!!

पद‍्म सिंह - ने कहा…

पेंगें भर-भर झूला झूलो.
घर-घर चैती
पड़े सुनाई.
खेत गोड़कर
करो बुवाई...

........ मन में नम मिट्टी की सुगंध भर गयी ... सच बहुत मोहक!

http://eksacchai.blogspot.com ने कहा…

" bahut hi badhiya bhav ke saath prastu ti ki hai aapne aur saty kaha hai aapne "

----- eksacchai { AAWAZ }

दीपक 'मशाल'... ने कहा…

kheti ko protsahit karti rachna pahli baar padh raha hoon.. ati sundar. aabhar

शिव कुमार "साहिल" ... ने कहा…

Bahut achi rachna !

Blogger शरद कोकास said... ने कहा…

बहुत अच्छा लगा संजीव जी का यह गीत ।