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मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

Meghdootam ..hindi poetry translation ..shlok..41 to 45by Prof . C B shrivastava " vidagdh"..Mandla / jabalpur

Meghdootam ..hindi poetry translation ..shlok..41 to 45
by Prof . C B shrivastava " vidagdh"..Mandla / jabalpur


तां कस्यांचिद भवनवलभौ सुप्तपारावतायां
नीत्वा रात्रिं चिरविलसनात खिन्नविद्युत्कलत्रः
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान वाहयेदध्वशेषं
मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपतार्थकृत्याः॥१.४१॥

वहाँ घन तिमिर से दुरित राजपथ पर
रजनि में स्वप्रिय गृह मिलन गामिनी को
निकष स्वर्ण रेखा सदृश दामिनी से
दिखाना अभय पथ विकल कामिनी को
न हो घन ! प्रवर्षण , न हो घोर गर्जन
न हो सूर्य तर्जन , वहाँ मौन जाना
प्रणयकातरा स्वतः भयभीत जो हैं
सदय तुम उन्हें , अकथ भय से बचाना


तस्मिन काले नयनसलिअं योषितां खण्डितानां
शान्तिं नेयं प्रणयिभिर अतो वर्त्म भानोस त्यजाशु
प्रालेयास्त्रं कमलवदनात सोऽपि हर्तुं नलिन्याः
प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पभ्यसूयः॥१.४२॥

सतत लास्य से खिन्न विद्युत लतानाथ
वह निशि वहीं भवन छत पर बिताना
कहीं एक पर , जहाँ पारावतों को
सुलभ हो सका हो शयन का ठिकाना
बिता रात फिर प्रात , रवि के उदय पर
विहित मार्ग पर तुम पथारूढ़ होना
सखा के सुखों हेतु संकल्प कर्ता
है सच , जानते न कभी मन्द होना



गम्भीरायाः पयसि सरितश चेतसीव प्रसन्ने
चायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम
तस्माद अस्याः कुमुदविशदान्य अर्हसि त्वं न धैर्यान
मोघीकर्तुं चटुलशफोरोद्वर्तनप्रेक्षितानि॥१.४३॥

तभी , सान्त्वना हेतु खण्डित प्रिया के
नयनवारि प्रेमी यथा पोंछते न !
हरे ओस आंसू , नलिन मुख कमल से
तरणि कर बढ़ा , तू अतः राह देना


तस्याः किंचित करधृतम इव प्राप्त्वाईरशाखं
हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधोनितम्बम
प्रस्थानं ते कथम अपि सखे लम्बमानस्य भावि
ज्ञातास्वादो विवृतजघनां को विहातुं समर्था॥१.४४॥

मन सम तरल स्वच्छ जल में गंभीरा
नदी धार लेगी प्रकृत छबि तुम्हारी
कुमुद शुभ्र चंचल चपल मीन प्लुति दृष्टि
उसकी उपेक्षा न हो धैर्य धारी


त्वन्निष्यन्दोच्च्वसितवसुधागन्धसम्पर्करम्यः
स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं दन्तिभिः पीयमानः
नीचैर वास्यत्य उपजिगमिषोर देवपूर्वं गिरिं ते
शीतो वायुः परिणमयिता काननोदुम्बराणाम॥१.४५


उस क्षीण सलिला नदी को निरखकर
लगेगा तुम्हें ज्यों कोई कामिनी हो
जो वानीर रूपी झुकी उंगलियों से
सम्भाले सलिल नील रूपी वसन को
वसन तुम जिसे हर , अनावृत जघन कर
कठिन पाओगे मित्र , प्रस्थान पाना
विवृत जघन कामिनी को भला
ज्ञातरस किस रसिक से बना छोड़ जाना

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर धन्यवाद ।

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

सरस सरल अनुवाद यह, सचमुच रस कि खान.
इस भाषिक सामर्थ्य का, सलिल करे गुणगान..