आचार्य संजीव 'सलिल' की २ गीतिकाएं
ई मेल: सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम, ब्लॉग: संजिवसलिल.ब्लागस्पाट.com
१
साधना हो सफल नर्मदा- नर्मदा.
वंदना हो विमल नर्मदा-नर्मदा.
संकटों से न हारें, लडें,जीत लें.
प्रार्थना हो प्रबल नर्मदा-नर्मदा.
नाद अनहद गुंजाती चपल हर लहर.
नृत्य रत हर भंवर नर्मदा-नर्मदा.
धीर धर पीर हर लें गले से लगा.
रख मनोबल अटल नर्मदा-नर्मदा.
मोहिनी दीप्ति आभा मनोरम नवल.
नाद निर्मल नवल नर्मदा-नर्मदा.
सिर कटाते समर में झुकाते नहीं.
शौर्य-अर्णव अटल नर्मदा-नर्मदा.
सतपुडा विन्ध्य मेकल सनातन शिखर
सोन जुहिला सजल नर्मदा-नर्मदा.
आस्था हो शिला, मित्रता हो 'सलिल'.
प्रीत-बंधन तरल नर्मदा-नर्मदा.
* * * * *
२
खोटे सिक्के हैं प्रचलन में.
खरे न बाकी रहे चलन में.
मन से मन का मिलन उपेक्षित.
तन को तन की चाह लगन में.
अनुबंधों के प्रतिबंधों से-
संबंधों का सूर्य गहन में.
होगा कभी, न अब बाकी है.
रिश्ता कथनी औ' करनी में.
नहीं कर्म की चिंता किंचित-
फल की चाहत छिपी जतन में.
मन का मीत बदलता पाया.
जब भी देखा मन दरपन में.
राम कैद ख़ुद शूर्पणखा की,
भरमाती मादक चितवन में.
स्नेह-'सलिल' की निर्मलता को-
मिटा रहे हम अपनेपन में.
* * * * *
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009
:गीतिकाएं: साधना हो सफल नर्मदा-नर्मदा/खोटे सिक्के हैं प्रचलन में. --संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
gazal,
geetikayen,
muktika,
tevaree
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
दोनो रचनायें दोल को छू गयी । धन्यवाद्
खोटे सिक्के हैं प्रचलन में.
खरे न बाकी रहे चलन में.
Bahut sundar prastuti.
Abhar.
salilji ki do geetikaye bahut badhiya rachna hai."sankto se na hare,lade,jeet le...." aur "ram kaid khud shurpnakha ki bharmati madak chitvan me".....ye dono hi rachnaye samyik-vyavstha ka sateek chitran karti hai....hardik badhaai..rajeev saxena,katni.
सादर नमस्कार।
आस्था हो शिला, मित्रता हो 'सलिल'.
प्रीत-बंधन तरल नर्मदा-नर्मदा.
---सादर आभार इस अनमोल रचना के लिए।।
एक टिप्पणी भेजें