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मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

दोहा गीतिका 'सलिल'

(अभिनव प्रयोग)

दोहा गीतिका

'सलिल'
*
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख्वाब की कैसे हो ताबीर?

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।

दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी खतरनाक तक्सीर।

फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर।
प्यार-मुहब्बत ही रहे मजहब की तफसीर।

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।

हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।

हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।

*********************************
तासीर = असर/ प्रभाव, ताबीर = कहना, तक़रीर = बात/भाषण, जम्हूरियत = लोकतंत्र, दहशतगर्दों = आतंकवादियों, तकसीर = बहुतायत, वतनपरस्ती = देशभक्ति, तकसीर = दोष/अपराध, तदबीर = उपाय, तफसीर = व्याख्या, तनवीर = प्रकाशित, तस्वीर = चित्र/छवि, ताज्वीर = कपट, खिदमत = सेवा, कौम = समाज, तब्जीर = अपव्यय, तब्शीर = शुभ-सन्देश, ज़ालिम = अत्याचारी, शमशीर = तलवार..

7 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

ने लिखा:

> अपके शब्दों मे वो ताकत है जो किसी भी शमशीर को झुकाने की ताकत रखती है.
> बहुत सुन्दर रचना बधाई।

Divya Narmada ने कहा…

नेह निर्मला का मिले, तो दिल को हो धीर.
भला सलिल का क्या करे, बेचारी शमशीर..

परमजीत बाली … ने कहा…

बहुत बढ़िया दोहे हैं...बधाई स्वीकारें।

हाय! सियासत रह गयी, सिर्फ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।

२२ दिसम्बर २००९ १२:४६ AM

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत सुन्दर.
देशभक्ति से ओतप्रोत रचना.
शब्द-चयन अत्युत्तम, भाष नियंत्रित.
भाव-प्रवाह निर्बाध. प्रेरणा दायी,
बहुत-बहुत बधाई..

मनोज कुमार ... ने कहा…

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

रंजना ... ने कहा…

बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तक़रीर।

बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
.........

फेंक द्रौपदी खुद रही फाड़-फाड़ निज चीर।

भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।

Kya baat kahi hai aapne.... nirvastra yatharth ko udbhedit karti sundar rachna...

गिरीश पंकज ... ने कहा…

दोहे पढ़ कर आपके, हुआ मुझे अभिमान,
सुन्दर भावो से सजा, सलिल-सृजन-उद्यान.

छंद-साधना आपकी, प्रेरक है परिदृश्य,
उज्जवल लगता है मुझे, साहित्य का भविष्य.

बधाई......