मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद
संजीव 'सलिल'
भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद: भारती की आरती --संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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6 टिप्पणियां:
bahut sundar.
hindi ko maathe ki bindi banaaye
बढ़िया बात...
हिन्दी की जय हो
maine pasand kar liyaa,
aap bhee click keejiye
http://abebedorespgondufo.blogs.sapo.pt/ said...
Good.
Portugal
December 17, 2009 3:40 AM
आदरणीय संजीव जी:
छन्द और विशेष रूप से ये पंक्ति अच्छी लगी :
>बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
सादर स्नेह के साथ
Anoop Bhargava
732-407-5788 (Cell)
609-275-1968 (Home)
732-420-3047 (Work)
आ० आचार्य जी,
हिंदी भाषा के उदबोध पर एक सशक्त और संप्रेषणीय छंद की प्रस्तुति पर साधुवाद ! " यो गेयः स पद्यः " सूत्र का मैं भी समर्थक हूँ पर मात्राओं की व्याकरण से अनभिज्ञ हूँ | केवल लय का ही पुजारी हूँ |
सादर
कमल
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