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मंगलवार, 26 मई 2009

गीत - मनोज श्रीवास्तव , लखनऊ

2 टिप्‍पणियां:

संजीव 'सलिल' ने कहा…

मनोज जी!

वन्दे-मातरम.

आपके ओजस्वी स्वर में राष्ट्रीय भाव-धारा की रचनाएँ जीवंत हो उठती हैं.

आपका लेखन और वाचन दोनों प्रभावशाली हैं.

अंशुमान, बंगलुरु ने कहा…

दिव्य नर्मदा पर पहली बार रिकॉर्डिंग सुनी. यह प्रयोग सफल है.

आज की तरुण और युवा पीढी के लिए इन रचनाओं की प्रासंगिकता है. कवितायेँ प्रभावित करती हैं.