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शुक्रवार, 12 मई 2023

आयुर्वेद, गन्ना, ईख, ममता सैनी

गन्ना घर-घर में पुजे

'गन्ना' घर-घर में पुजे , 'ईख' प्रकृति उपहार।
'अंस, ऊंस' महाराष्ट्र में, लोग कहें कर प्यार।१।
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'चेरुकु' कहता आंध्र है, 'इक्षुआक' बंगाल।
गुजराती में 'शेरडी', 'भूरस' नाम कमाल।२।
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मलयालम में 'करिंबू' , तमिल 'करंपु' भुआल।
'मधुतृण, दीर्घच्छद' मिले, संस्कृत नाम रसाल।३।

'सैकेरम ऑफिसिनेरम', कहे पौध विज्ञान। 
'पोआसिआ' कुलनाम है, हम कहते रस-खान।४।  
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लोक कहे 'गुड़मूल' है, कुछ कहते 'असिपत्र'। 
'कसबुस्सुकर' अरब में,  है रस-राज विचित्र।५।  
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नाम 'नैशकर' फारसी, 'पौंड्रक' एक प्रजाति।  
'शुगर केन' इंग्लिश कहे, जगव्यापी है ख्याति।6।  
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छह से बारह फुटी कद, मिलता यह सर्वत्र। 
चौड़े इंची तीन हों, चौ फुट हरियल पत्र।7।  
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पुष्प गुच्छ होता बड़ा, बहुशाखी लख रीझ। 
फूले वर्षा काल में, शीत फले लघु बीज।८। 
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लाल श्वेत हो श्याम भी, ले बेलन आकार।  
बाँस सदृश दे सहारा, सह लेता है भार।९। 
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रक्तपित्त नाशक कफद, बढ़ा वीर्य-बल मीत। 
मधुर स्निग्ध शीतल सरस, मूत्र बढ़ाए रीत।१०।
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गरम प्रदेशों में करें, खेती हों संपन्न। 
गन्ना ग्यारस को न जो, पूजे रहे विपन्न।११। 
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रस गुड़ शक्कर प्रदाता, बना गड़ेरी चूस।  
आनंदित हों पान कर, शुगर केन का जूस।१२।
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 गन्ना खेती लाभप्रद, शक़्कर बिके विदेश। 
 मुद्रा कमा विदेश की, विकसे भारत देश।१३।  
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कच्चे गन्ने से बढ़े, कफ प्रमेह अरु मेद।  
पित्त मिटाए अधपका, हरे वात बिन खेद।१४।  
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रक्त पित्त देता मिटा, पक्का गन्ना मीत। 
वीर्य शक्ति बल बढ़ाएँ, खा गन्ना शुभ रीत।१५।  
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क्षुधा-वृद्धि कर पचाएँ, भोजन गुड़ खा आप।
श्रम-त्रिदोष नाशक मधुर, साफ़ करे खूं आप।१६।  
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मृदा पात्र में रस भरें, रखें ढाँक दिन सात।      
माह बाद दस ग्राम ले, करें कुनकुना तात। १७ अ।  

तीन ग्राम सेंधा नमक, मिला कराएँ पान। 
पेट-दर्द झट दूर हो, पड़े जान में जान।१७ आ। 
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तपा उफाना रस रखें, शीशी में सप्ताह। 
कंठरोध कुल्ला करें, अरुचि न भरिए आह।१८ अ। 

भोजन कर रस पीजिए, बीस ग्राम यदि आप। 
पाचक खाया पचा दे, अपच न पाए व्याप।१८ आ। 
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टुकड़े करिए ईख के, छत पर रखिए रात। 
ओस-सिक्त लें चूस तो, मिटे कामला तात।१९। 
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ताजा रस जड़ क्वाथ से, मिटते मूत्र-विकार। 
मूत्र-दाह भी शांत हो, आप न मानें हार।२०। 
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गौ-घी चौगुन रस पका, सुबह-शाम दस ग्राम। 
कास अगर  पी लीजिए, तुरत मिले आराम।२१।
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जब रस पक आधा रहे, मधु चौथाई घोल।  
मृदा-पात्र में माह दो, रख सिरका अनमोल।२२ अ। 

बना पिएँ जल संग हो, ज्वर-तृष्णा  झट ठीक। 
मूत्र-कृच्छ भी दूर हो, मेद मिटे शुभ लीक।२२ आ। 
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चेचक मंथर ज्वर अगर, आसव तिगुना नीर। 
मिला बदन पर लगा लें, शीघ्र न्यून हो पीर।२३। 
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दुःख दे शुष्क जुकाम यदि, मुँह से आए बास।  
मिर्च चूर्ण गुड़ दही लें, सुबह ठीक हो श्वास।२४। 
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बूँद सौंठ-गुड़ घोल की, नाक-छिद्र में डाल।
हिक्का मस्तक शूल से, मुक्ति मिले हर हाल।२५। 
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गुड़-तिल पीसें दूध सँग, घी संग करिए गर्म। 
सिरोवेदना मिटाने, खा लें करें न शर्म।२६। 
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पीड़ित यदि गलगण्ड से, हरड़ चूर्ण लें फाँक। 
गन्ना रस पी लें तुरत, रोग न पाए झाँक।२७। 
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भूभल में सेंका हुआ, गन्ना चूसें तात। 
लाभ मिले स्वरभंग में, करिए जी भर बात।२८। 
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गुड़ सरसों के तेल का, समभागी कर योग।  
सेवन करिए दूर हो, शीघ्र श्वास का रोग।२९। 
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पाँच ग्राम जड़ ईख की, कांजी सँग लें पीस।  
तिय खाए पय-वृद्धि हो, कृपा करें जगदीस।३०। 
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रस अनार अरु ईख का, मिला पिएँ समभाग। 
खूनी डायरिया घटे, होन निरोग बड़भाग।३१।
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गुड में जीरा मिलाकर, खाएँ  विहँस हुजूर। 
अग्निमांद्य से मुक्त हों, शीत-वात हो दूर।३२।
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रक्त अर्श के मासे या, गर्भाशय खूं  स्राव। 
रस भीगी पट्टी रखें, होता शीघ्र प्रभाव।३३।
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मूत्रकृच्छ मधुमेह या, वात करें हैरान।   
गुड़ जल जौ का खार लें, बात वैद्य की मान।३४।
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बैठें पानी गर्म में, पथरी को कर दूर। 
गर्म दूध-गुड़ जब पिए, हो पेशाब जरूर।३५। 
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ढाई ग्राम चुना बुझा, गुड़ लें ग्यारह ग्राम। 
वृक्क शूल में लें वटी, बना आप श्रीमान।३६।
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प्रदर रोग में छान-लें, गुड़ बोरी की भस्म। 
लगातार कुछ दिनों तक, है उपचार न रस्म।।३७। 
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चूर्ण आँवला-गुड़ करे, वीर्यवृद्धि लें मान। 
मूत्रकृच्छ खूं-पित्त की, उत्तम औषधि जान।३८।      
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गुड़-अजवायन चूर्ण से, मिटते रक्त-विकार। 
रोग उदर्द मिटाइए, झट औषधि स्वीकार।३९।
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कनखजूर जाए चिपक, फिक्र न करिए आप। 
गुड़ को जला लगाइए, कष्ट न पाए व्याप।४०।      
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अदरक पीपल हरड़ या, सौंठ चूर्ण पँच ग्राम। 
गर्म दूध गुड़ में मिला, खाएँ सुबहो-शाम।४१ अ।

शोथ कास पीनस अरुचि, बवासीर गलरोग। 
संग्रहणी ज्वर वात कफ, श्याय मिटा दे योग।४१ आ।
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शीतल जल में घोल गुड़, कई बार लें छान। 
पिएँ शांत ज्वार-दाह हो, पड़े जान में जान।४२।
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काँच शूल काँटा चुभे, चिपकाएँ गुड़ गर्म।
मिलता है आराम झट, करें न नाहक शर्म।४३।  
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धार-ऊष्ण गौ दुग्ध को, मीठा कर गुड़ घोल।  
यदि नलवात तुरत पिएँ, बैठे नहीं अबोल।४४।
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गन्ना-रस की नसी दें, यदि फूटे नकसीर। 
दे आराम तुरत फुरत, औषधि यह अक्सीर।४५।
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हिक्का हो तो पीजिए, गन्ना रस दस ग्राम। 
फिक्र न करिए तनिक भी, तुरत मिले आराम।४६।
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अदरक में गुड़ पुराना, मिला खाइए मीत।      
मिटे प्रसूति-विकार अरु, कफ उपयोगी रीत।४७।
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जौ के सत्तू साथ कर, ताजे रस का पान। 
पांडु रोग या पीलिया, का शर्तिया निदान।४८।
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पीसें जौ की बाल फिर, पी लें रस के साथ। 
कोष्ठबद्धता दूर हो, लगे सफलता हाथ।४९।
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गन्ना रस को लें पका, ठंडा कर पी आप। 
दूर अफ़ारा कीजिए, शांति सके मन व्याप।५०। 
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गन्ना रस अरु शहद पी, पित्त-दाह हो दूर। 
खाना खाकर रस पिएँ, हो परिपाक जरूर।५१। 
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शहद आँवला-ईख रस, मूत्रकृच्छ कर नष्ट। 
देता है आराम झट, मेटे सकल अनिष्ट।५२।
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गन्ने का इतिहास बहुत अलबेला है। कहते हैं भारत में गन्ना जंगली पौधे के रुप में उगता था। और वनस्पति वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधा मूल रुप से भारत में ही होता था। यहां से शर्करा शब्द ग्रीक, रोमन, फारसी और अरबी भाषाओं में गया। पहली शताब्दी के ग्रीक और लैटिन ग्रन्थों में उल्लेख है कि 'साखारोन' एक प्रकार का मधु है, जो बांस में मधुमखियों के बिना पाया जाता है, जो भारत में है, और दॉतों से चबाया जाता है। चीन में शर्करा को शि-मि (पाषण मधु) कहते थे। पाषण का अर्थ कंकड अथवा कणात्मक है। सन् 285 में कम्बुज देश ने चीन को गन्ने उपहार स्वरुप भेजे थे। सन् 647 में चीन के सम्राट थाइ-त्सुड् ने मगध में भारतीय शर्करा निर्माण की पद्धति सीखने के लिए शिष्टमण्डल भेजा था। जब अरब सेनाओं ने इरान को सन् 640 में पराजित करके धर्मान्तरित किया, तब सर्वप्रथम इरान से शर्करा निर्माण के लिए ले गए। इरान में शर्करा का उत्पादन बहुत प्राचीन काल में भारत से गया था। लोग कहते हैं कि एक बार गन्ने की फसल आने पर लोग खूब जश्न मना रहे थे तभी सिकंदर भारत देश को लूटने के इरादे से अपनी विशाल सेना के साथ आया। उसने खेतों में कई हरे-लाल रंग की लंबी-लंबी लकडियों को उगा देखा। जब वह थोडा आगे बढ़ा तो कई लोग इन लकडियों को चूस-चूसकर खूब आनन्दित हो रहे थे। उसे यह सब देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि इन लकडियों में ऐसी क्या खूबी है?, उसने एक गन्ने चूस रहे आदमी से पूछा, तुम लोग इन लकडियों को क्यों चूसते हो? उस आदमी ने उत्तर देने के बजाय एक गन्ना सिकन्दर को देते हुए कहा-'तुम भी इसे चूसो।' सिकन्दर को गन्ने का रस इतना स्वादिष्ट लगा कि उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया। 'यहां से कुछ गन्ने ले जाओ और जमीन में रोपकर खेती करना शुरु कर दो।' कहते हैं कि गन्ने के पौधे की खोज आज से दो हजार वर्ष पूर्व एक आदिवासी के द्वारा अचानक हो गई थी। उस आदिवासी का घोडा खो गया था। वह आदिवासी यूनान के टेलस्मि में रहता था। वह घोडे क़ी खोज में जंगल में भटक रहा था। बहुत खोजने पर भी जब घोडा नहीं मिला तो वह हाथ में जलती मशाल लेकर बीहड ज़ंगल में उसे खोजने चल पडा। जब उसे जोर की प्यास लगी और आस पास पानी नहीं मिला तो उसकी नजर मधुमखियों के छत्ते पर पडी ज़ो एक दुबले पतले पौधे पर लगा था। उसने शहद पीने की इच्छा से मशाल की मदद से छत्ते से मधुमक्खियों को उडाया, और छत्ते को तोडना चाहा। छत्ता तो टूटा नहीं, वह दुबला-पतला पौधा मशाल की मार से बीच में से टूट गया और उसमें से रस टपकने लगा।
आदिवासी ने प्यास बुझाने के लिए टपकते रस के आगे अपनी जीभ बढा दी। उसे वह रस बहुत मीठा लगा। उसकी प्यास भी बुझ गई। आदिवासी को बडा अचरज लगा। क्योंकि उसने ऐसा स्वाद पहले न चखा था। वह इतना खुश हुआ कि घोडे क़ो ढूंढने की बात ही भूल गया और उस टूटे हुए पौधे को अपने साथ घर ले आया। उसने अपनी झोपडी क़े बाहर खाली पडे ज़मीन में वह पौधा रख दिया। रात में बारिश से पौधे का टुकडा जमीन में दब गया और कुछ दिनों के पश्चात वहां तीन-चार पौधे निकल आए। तभी से आदिवासियों में गन्ने का पौधा चर्चा का विषय बन गया। आदिवासी इसे अपने झोपडी क़े बाहर लगाने लगे। फिर धीरे-धीरे इसकी खेती भी शुरु हो गई। गन्ने के जन्म के बारे में एक लोककथा भी है। यह कहा जाता है कि यूनान के पुराणों में कहा गया है कि गन्ने का जन्म मरियन नामक एक संत ने आग की राख से किया था। जापान में भी गन्ने के बारे में एक लोककथा है। वहां जिक्र मिलता है कि प्राचीन काल में थामसा नाम के एक भिखारी ने एक विशाल वृक्ष को शाप देकर दुबला-पतला बना दिया था। जो बाद में गन्ने के नाम पर प्रसिद्ध हुआ।


वैसे गन्ने का लैटिन नाम सैकेरम ऑफिसिनेरम है। इसका नाम गन्ना क्यों पडा इस बारे में बेबिलोन के इतिहास में यह जिक्र मिलता है कि ईसा से आठ सौ वर्ष पूर्व गायना नामक आदिवासी ही इसकी खेती किया करते थे और उन्हीं के नाम पर इसका नाम गन्ना पडा। इसका भारतीय नाम ईख है। जहां पानी की पर्याप्त मात्रा रहती है, वहां यह बहुत पैदा होता है। भारत में इसकी खेती की शुरुआत ईसा से 338 वर्ष पूर्व हुई थी। उस समय लोग जब गन्ने की फसल आती तो खुश होकर नाचते- गाते जश्न मनाया करते थे। उत्तरी कनाडा, ब्राजील, मलेशिया में भी गन्ने बहुतायत मात्रा में होते हैं। वहां गन्ने की ऊंचाई बीस फुट तक होती है। वहां एक गन्ने से औसतन पांच लीटर रस निकाला जाता है।

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