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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

जगन्नाथ भक्त सालबेग

 

इस अनोखी दुनिया की सबसे विचित्र बातें क्या हैं? जिन्हें सभी लोग नहीं जानते होंगे?

"हे जगत के बंधु मेरे जगन्नाथ! मै तुमसे 750 कोस दूर वृन्दावन मे हूँ। तुम्हारे चरण कमलों के दर्शन करना चाह रहा हूँ, बस मेरे पूरी पहुँचने तक तुम नंदिघोष पर बैठे रहना!"

प्रार्थना कर रहे है एक मुस्लिम भक्त सालबेग की अपने प्रभु जगन्नाथ से, क्योंकि मंदिर के अंदर इन्हे प्रवेश नहीं है और जब जगन्नाथ रथयात्रा के माध्यम से अपने सारे ऐसे भक्तो को दर्शन देने निकले हुए है तब सालबेग वृन्दावन मे है।

मित्रों ये सत्य घटना है सत्रहवी शताब्दी की….

मुग़ल सेना के एक सैनिक सालबेग एक बार युद्ध मे बुरी तरह से घायल हो गए और प्राणों पर संकट आ गया, तब इनकी माता के समझाने पर इन्होने जगन्नाथ भगवान के नाम का आश्रय लिया और चमत्कारिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ्य हो गए।

अब मन मे तो बड़ी लालसा जगी की जिन्होंने मुझे मौत के मुँह से बाहर निकाल लिया है एक बार उनके दर्शन तो करूँ, एक बार उनको प्रणाम तो करूँ!

यही श्रद्धा लिए वे जगन्नाथ पुरी आ गए, किन्तु सनातन धर्मनुयायी ना होने के कारण मंदिर मे प्रवेश नहीं दिया गया। सालबेग तब पैदल पुरी से वृन्दावन की यात्रा करके पहुँचे और पूरे एक साल तक वृन्दावन मे रहकर गोविन्द की भक्ति मे ऐसे रमे ऐसे रमे की राधा कृष्ण की लीलाओं का चित्रण करते हुए अनेको भजनों की रचना कर दी।

फिर आया समय रथयात्रा का जब प्रभु अपने मंदिर से बाहर आकर हर धर्म हर जाती पांति के बन्धन तोड़कर प्रत्येक जीव मात्र को दर्शन देने निकलते है।

और यहाँ सालबेग वृन्दावन से पुरी धाम फिर से पदयात्रा करते हुए जाने को तैयार हुए की शरीर को रोगों ने आ घेरा, एक कदम भी चलना दूभर हो गया।

तब अंतर्मन मे प्रार्थना करते हुए वे गाने लगे:

जगबंधु हे गोसांईं सतस पञ्च कोस चली नरपराई….

मोहा जीबा जाइन नंदिघोसे ठिवा राई…..

(हे जगत के बंधु मेरे जगन्नाथ! मै तुमसे 750 कोस दूर वृन्दावन मे हूँ। तुम्हारे चरण कमलों के दर्शन करना चाह रहा हूँ, बस मेरे पूरी पहुँचने तक तुम नंदिघोष पर बैठे रहना!)

और फिर भगवान ने जब अपने भक्त की करुण पुकार सुनी तो वे रथ समेत उसी स्थान पर खड़े हो गए, बड़े से बड़े लोग रथ खींचने बुलवाये गए-पुजारीयों द्वारा अर्चना पूजन किया गया, हर वो उपाय किया गया जिससे रथ फिर से चल पड़े पर नहीं…..

जैसे फूल जैसे भगवान अचानक से मेरु पर्वत के सामान बन गए थे, एक दिन दो दिन और तीन दिन तक सतत प्रयास चलते रहे पर जगन्नाथ भगवान का रथ अपने स्थान से सुई बराबर भी आगे नहीं बढ़ रहा था।

फिर चौथे दिन सालबेग पुरी पहुँचे और सीधे भगवान के नंदिघोष रथ के सामने जाकर खड़े हो गए….

भक्त ने भगवान के दर्शन किए और भगवान ने भक्त को आया हुआ जान लिया, बस नेत्रों मे प्रेमाश्रु लिए जैसे ही सालबेग ने रथ पर हाथ लगाया वो तुरंत चलने लगा!

मानो रथ रुका ही नहीं था कभी!

जिस स्थान पर भगवान ने अपने भक्त की तीन दिन प्रतीक्षा की उसी स्थान को सालबेग ने अपने रहने का स्थान बना लिया और पुरी मे रहते हुए उन्होंने असंख्य भजनों की रचना की और प्रभु के पास सदैव के लिए चले जाने के बाद उस स्थान को "भक्त सालबेग समाधित स्थल" बना दिया गया।

तब से ही प्रत्येक रथ यात्रा मे भगवान अपने नंदिघोष रथ को दो क्षण के लिए अपने प्रिय भक्त की समाधी के आगे अवश्य रोकते है।

पुरी मंदिर के आधिकारिक रिकार्ड्स मे इस सत्य घटना का उल्लेख हमें प्राप्त होता है, कोई भी इसे पढ़ सकता है।

अब बताइये एक भक्त के अपने भगवान के प्रति भाव बड़े या उसका धर्म उसकी बिरादरी या फिर वो कितना धनाढ्य है कितना शक्तिशाली है।

उस परमशक्ति तक बस अपने भाव बिना किसी छल बिना किसी कपट को मन मे लिए अगर एक बार भी हम पहुँचा सके ना तो फिर कोई आश्चर्य नहीं की हमारे लिए भी भगवान प्रतीक्षा करते हुए मिल जायेंगे।

भजामी भाव वल्लभम् कुयोगिनाम सुदुर्लभम।

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