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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

ताजमहल

ताजमहल 

ताजमहल को बिना सीमेंट के कैसे इतना मजबूत बनाया गया था?

दुनिया के सात अजूबों में से एक, शिवालय या ताजमहल (१६३१ ई.-१६४१ ई.) कई भूकंप आंधी तूफानों को झेलकर भी मजबूती के साथ खड़ा है। क्या आप जानते हैं कि जब इसे बनाया गया तब सीमेंट का अविष्कार नहीं हुआ था। बिना सीमेंट के इसके पत्थरों को किस तरह जोड़ा गया कि यह आज भी सुरक्षित है। ताजमहल ही नहीं अन्य इमारतों को बनाते समय भी  पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए दो तरह की तकनीक काम में लाई गईं -

१. नींव में पत्थरों को एक-दूसरे पर इस तरह रख गया की उनका गुरुत्वाकर्षण केंद्र एक सीध में रहे। इसी रेखा में पत्थरों में छेड़ कर उसमें लोहे की कील (छड़ का टुकड़ा) रांगे के साथ लगे गया ताकि दोनों पत्थर न हिल सकें। 

२. भवन में ईंटनुमा पत्थरों को जोड़ने के लिए एक खास तरह के मिश्रण का उपयोग किया गया। चूहा या छुई मिट्टी (चिकनी मिट्टी)  को पानी में भीगा-गाला क्र उसमें से कंकर आदि अलग कर देने के बाद गुड,बताशा, बेल फल का गूदा और रस, दही, उड़द की दाल, जूट, कत्था आदि  चीजों को मिलाकर कई दिनों तक मिलाया जाता था।  इस मिश्रण का उपयोग गारे (मॉर्टर) की तरह किया जाता था। इसमें लाल, हरा या पीला रंग मिलकर रंगीन गारा बना लिया जाता था। जयपुर के राजमहलों में अंडे की ज़र्दी भी इस मसाले में मिलाई गई। इस कारण वे दीवारें सैंकड़ों साल बाद भी संगमरमर की तरह चिकनी और चमकदार हैं। इस इमारतों में दरारें न पड़ने का कारण मसले का धूलमुक्त होना है।  

ताजमहल को सजाने के लिए हक़ीक़, फ़िरोज़ा, मूंगा, सुलेमानी, लहसुनिया, तलाई, लाजवर्त, रक्तमणि, बैरूज, पुखराज, यशब, पिटुनिया, तुरमली, ज़हर मोहरा, मिकनातिस, सिंदूरिया, नीलमणि, झाँवा, नाखोद, गोमेद, मोती, पन्ना, हीरा,माणिक,  जमीनिया, फ़िरोज़ा आदि रत्न तथा बेशकीमती खाटू पत्थर, संगमरमर, सुलेमानी पत्थर आदि का प्रयोग किया गया था। 

सिमेंट कब बनी?

सीमेंट का अविष्कार साल 1824 ईस्वी में इंग्लैंड के रहने वाले जोसेफ एस्पडीन ने किया था।

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