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सोमवार, 4 अक्तूबर 2021

सोरठा सलिला

सोरठा सलिला 
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सलिल हुआ है धन्य, नेह नर्मदा में नहा।
देख नर्मदा मातु, सुखानंद अनुपम गहा।।
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लहर-लहर को चूम, रवि किरणें पुलकित हुईं।
मचा रही हैं धूम, जैसे नन्हीं तितलियाँ।।
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मोक्षदायिनी मात, तन-मन का कल्मष हरें।
गंग स्नान सा पुण्य, रेवा दर्शन पा तरें।।
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अगिन बिंब-प्रतिबिंब, लहर लहर में बन रहे।
देख सके तो देख, चित्र अनूठे अनकहे।।
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विहँस हरितिमा झाँक, तट-खेतों पर झूमती।
भू दामन पर टाँक, सपने खुशियाँ चूमती।।
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सेतु उठाकर भार, तट से तट को जोड़ता।
बंद मत करो द्वार, दिल के; सुख मुँह मोड़ता।।
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करतब करती मछलियाँ, नाचें झूमें तैर।
ज्यों बागों में तितलियाँ, करें नाचकर सैर।।
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४-१०-२०२१ 
ए १/ ९, श्रीधाम एक्सप्रेस 
छंद शाला
सोरठा
एक साथ हँस आज, रवि-अरविंद सुशोभित नभ में।
पूर्ण करें सब काज, तुलसी पत्र मंजरी सँग ज्यों।।
दोहा
रवि-अरविंद सुशोभित नभ में, एक साथ हँस आज।
तुलसी पत्र मंजरी सँग ज्यों, पूर्ण  करें सब काज।।

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