कुल पेज दृश्य

शनिवार, 3 जुलाई 2021

दोहा-हाइकु गीत

अभिनव प्रयोग
दोहा-हाइकु गीत
प्रतिभाओं की कमी नहीं...
संजीव 'सलिल'
**
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
धूप-छाँव का खेल है
खेल सके तो खेल.
हँसना-रोना-विवशता
मन बेमन से झेल.
दीपक जले उजास हित,
नीचे हो अंधेर.
ऊपरवाले को 'सलिल'
हाथ जोड़कर टेर.
उसके बिन तेरा नहीं
कोई कहीं अस्तित्व.
तेरे बिन उसका कहाँ
किंचित बोल प्रभुत्व?
क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
पेट दिया दाना नहीं.
कैसा तू नादान?
'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
भिक्षा तू भगवान'.
मुट्ठी भर तंदुल दिए,
भूखा सोया रात.
लड्डूवालों को मिली-
सत्ता की सौगात.
मत कहना मतदान कर,
ओ रे माखनचोर.
शीश हमारे कुछ नहीं.
तेरे सिर पर मोर.
उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
३-७-२०११ 
*

कोई टिप्पणी नहीं: