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रविवार, 2 अगस्त 2020

बोली परिचय - बघेली

बोली परिचय : बघेली 
बघेली या बाघेली बोली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर रीवा तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती हैं। इसके अन्य नाम मन्नाडी, रिवाई, गंगाई, मंडल, केवोत, केवाती, केवानी और नागपुरी हैं। बघेली बोली के क्षेत्र के अंतर्गत रीवाँ अथवा रीवा, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है। इसके अतिरिक्त बघेली बोली महाराष्ट्रउत्तर प्रदेश और नेपाल में भी बोली जाती है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या ३,९६.००० है। 
  • कुछ अपवादों को छोड़कर बघेली में केवल लोक- साहित्य है।
  • सर्वनामों में 'मुझे' के स्थान पर म्वाँ, मोही; तुझे के स्थान पर त्वाँ, तोही; विशेषण में -हा प्रत्यय (नीकहा), घोड़ा का घ्वाड़, मोर का म्वार, पेट का प्टवा, देत का द्यात आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं।
  • इसकी मुख्य बोलियाँ तिरहारी, जुड़ार, गहोरा आदि हैं। -भारतकोश
बघेली या बाघेली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, उमरिया, एवं अनूपपुर में; उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जनपदों में बोली जाती है। इसे "बघेलखण्डी", "रिमही" और "रिवई" भी कहा जाता है। - यूनियनपीडिया .
बघेली या बाघेली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, उमरिया, एवं शहडोल, अनूपपुर में; उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं कोरिया जनपदों में बोली जाती है। इसे "बघेलखण्डी", "रिमही" और "रिवई" भी कहा जाता है। 
बघेली बोली के कुछ वाक्य
कहा जाते है। थोका चाचा के हीया जइथे चली खाना खाई लेइ। केतना समझाई तोहका/तुमका। जल्दी आबा। का बताई। तोहरे कपार मा भूसा भरा है। देखलेई एनका। केतना घुसा। अबहिन अइथे।  - विकिपीडिया 
बघेली मंच 
भाषाशास्त्र की नजर में मघ्यदेश की आठ बोलियों के समुदाय को हिन्दी पुकारा गया है-खड़ीबोली, बाँगर, ब्रज, कनौजी और बुँदेली, इन पाँचो कांे भाषा-सर्वे मे पश्चिमी हिन्दी नाम दिया गया है और बाकी अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी को पूर्वी हिन्दी कहा गया है। सन १९४० में प्रकाशित ‘हिन्दी भाषा का इतिहास’ में डा. धीरेन्द्र वर्मा ने उल्लेख किया है-‘अवधी के दक्षिण में बघेली का क्षेत्र है। उसका केन्द्र रीवाँ राज्य है किन्तु यह मध्यप्राँत के दमोह, जबलपुर, मण्डला तथा बालाघाट जिलों तक फैली है’। न जाने क्यो डाक्टर साहब ने तत्कालीन संयुक्तप्राँत के बाँदा-जालौन आदि जिलों को भुला दिया ह,ै जहाँ बघेली बोली जाती है।
दसवीं सदी के सती-शिला-लेख में उत्कीर्ण नाम रीमाँ से प्रमाणित होता है कि इसका वजूद एक हजार वर्ष पुराना है। सदी १३ वीे और १४ वीे मे लमाना ब्यापारियों ने इसे रीमाँ मण्डी के नाम से प्रख्यात कर रखा था और इतिहासकारों ने मुहावरा दे रखा थां ‘नो मेन लैण्ड’ माने बे मानुष धरती का। जिसे खारिज किया था इस्लाम शाह (जलाल खाँ) और आगे बढ़ कर बघेल राजा बिक्रमादित्य ने रीमाँ में एक के बाद एक ने, गढ़ी और परकोटों का निर्माण करा कर। जिसका इतिहास जुरा है शेरशाह सूरी, अकबर और जहाँगीर के बादशाहत का काल। यहाँ स्थान अभाव वर्णित करने की मंजूरी नहीं देता। साक्ष्य स्वरूप प्रस्तुत है रीमाँ की खासकलमी बंशाबली-बाँधौगढ़ एकोत्रा जमाबंदी की इबारत, जिनमे कमाल है रिमँही बोली का- इस्लामशाह हो गए हैं सलेमसाहि और विक्रमादित्य, बिकरमाजीत किन्तु फारसी के शब्दों को नहीं तोड़ा मरोरा है। पहली इबारत है-‘रीमाँ केर किला बनबाबा सलेमसाहि पातसाहि’ और दूसरी ‘ तकसीम परगने माफिक फरमान जहाँगीर साह का राजा बिकरमाजीत की जागीर का तबक संवत १६६१ के साल फरमान सरकार महाल परगने १८’, तदानुसार सन १६०५ में बघेल राजा विक्रमादित्य ने १८ परगने की रीमाँ-मुकुन्दपुर जागीर की स्थापना की।
भला गुजराती भाषाभाषी इनके पूर्वजों केे पास, बघेली कहाँ छाँदी हुई थी कि अपने साथ डोरिया कर लाते और यहाँ ढील देते। राजा विक्रमादित्य के बाद क्रमिक पीढ़ी के सन १९४८ तक एक दर्जन शासक हुए। क्रम ९ के महाराजा रघुराज सिंह के शासनकाल में बुँदेलखण्ड की तर्ज पर बघेलखण्ड शब्द सन १८६८ से अधिक प्रचलित हो चला। जब यहाँ सतना में बघेलखण्ड नाम की पोलेटिकल एजेन्सी कायम हुई। वही काल था जब सर अब्राहम गिअर्सन को भारतीय भाषा-सर्वे कार्य सौंपा गया। उनकी रपट ‘लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्डिया’ सन १९०४ में प्रकाशित हुई। उस में बघेलखण्ड की बोली का नाम छपा था बघेली। लीजिए लिखन्तों-पढन्तों को नया नाम मिल गया बघेली और अपढ़ गमँइहों के बीच गाँवो में भटकती फिरती रिमँही और रीमाँ आज भी भेंटा जाते हैं।

ब्रिटिश इण्डिया गवर्नमेन्ट ने मुगलकाल से चली आ रही दफ्तरी भाषा फारसी को बहाल कर रखा था और पोलेटिकल डिपार्टमेन्ट में आफीसियल लैंग्वेज इंगलिश थी। काल गति के चलते पहली अप्रैल सन १८७५ कों रीमाँ राज्य का प्रशासन महाराजा रघुराज सिंह से लेकर, हथिया लिया था पोलेटिकल एजेन्सी ने। तब राज्य भाषा रिमँही को बेदखल कर काबिज करा दिया था फारसी को। लिपि नागरी बहाल रही। फारसी में अक्षर ‘मा ’हुआ करता है ‘वाँ‘। फारसीदाँ रीमाँ न लिख कर लिखने लगे रीवाँ और स्टेट पोलेटिकल डिपार्टमेन्ट त्म्ॅ।. भला अँगरेजी के आगे कोई भाषा टिक सकी है। भारत हो गया इण्डिया तब रीवाँँ कौन से खेत का मूली था कि टिक पाता। जैसे राहु-केतु लीलता है चाँद को बीसवीं सदी के मध्य काल आते तक रसे रसे, लील लिया अँगरेजी ने उसकी चन्द्रबिन्दु और वह रीवा बन कर चल डगरा। यह तो रिमँहाई संस्कृति है कि यहाँ के गाँव रीमाँ को जिलाये हुए हैं। गाँव का मानुष घर में कहकर चलता है ‘जइत है रीमा’ और पहुँच जाता है रीवा।
बघेली शब्दार्थ 
अरे नहीं                                      oh no
ए दादू 
का आय?            क्या है?             what?
काहे                   क्यों                  why 
really - सही बताबा ?
 
hey dude- 
hey girl- ऐ बिटिया
whats up- का होइ रहा
done - होइ गा
not done - नही भा
Let him go - जाय दे ओखा
i dont know-हम नहीं जानी
hurry - चटकई
Smooth -चीकन
Lady - मेंहरिया
man - मेंसेरुआ
Father- बाप
mother - महतारी
Resolved - पुर कइके
Slapping - सोबत
run away - भाग ले
stay here - इहय रहें
now - अबय
not now- अबै नही
never- कभऊ नही
Wife - महेरिया
Husband- मेंसेरुआ
Boy-टोरबा/ लड़िका
Girl- बिटिया
Come here- हियन आव
Go There- ओकई जा
Same to same- जैसन को तैसन
Sunlight - घाम
shadow - छाव
very- अकिहाय
less - थो का
basket- डलिया
gate- फाटक
neck- नटइ
Knee- गुठुआ
Finger - उंगरी
ox- बरदा
rat-मूस
frog - गूलर

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