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शुक्रवार, 5 जून 2020

मुक्तिका

मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
संजीव 'सलिल'
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अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों के सँग- सँग सँवर जायेंगे हम.
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आयेंगे हम..
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बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटायें, बढ़ा जायेंगे हम.
चादर अगर ज्यों की त्यों रह सकी तो, आखर भी ढाई सुमिर गायेंगे हम..
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सराहो न हमको भले सामने तुम, जो झाँकोगी दिल में तो दिख जायेंगे हम.
मिलें न मिलें  किन्तु नग्मे तुम्हारे, हुस्नो-अदा के सदा गाएँगे हम..
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