सरलता के पर्याय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
डॉ. विनीता राहुरिकर
भोपाल के विश्व संवाद केंद्र में जब भारतीय साहित्य परिषद की मासिक गोष्ठी चल रही थी तब अचानक ही एक धीर-गम्भीर प्रभावशाली व्यक्ति ने हॉल में प्रवेश किया। कौतूहल से मैं देखने लगी। फिर उनका परिचय प्राप्त हुआ कि वे "आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी" हैं।
हम सब उन्हें अपने बीच पाकर हर्षित और गौरवान्वित हुए। विश्वास नहीं हो रहा था कि वे सच में हमारे बीच हैं। गोष्ठी के बाद आचार्य जी से सबका अनौपचारिक वार्तालाप प्रारम्भ हुआ। कुछ सदस्य अपनी पुस्तकें भी लाये थे। उन्होंने अपनी पुस्तक भेंट की।
उस दिन भाग्य से मेरे पास भी मेरे कहानी संग्रह की एक प्रति थी। बहुत मन हो रहा था कि मैं भी अपनी पुस्तक आचार्य जी को भेंट करूँ किन्तु संकोच हो रहा था कि इतने वरिष्ठ साहित्यकार भला क्या पढ़ेंगे मेरी पुस्तक। और स्वीकार भी क्या करेंगे क्योंकि पूर्व में कुछ साहित्यकारों के साथ यह अनुभव भी हुआ था कि उन्होंने पुस्तक लेने में ही आनाकानी की थी।
तो बहुत मन होने के बाद भी संकोच में घिरी रही। तब एक साथी लेखिका से कहा तो उन्होंने संजीव जी को बताया।
आचार्य जी ने बड़ी आत्मीयता से तुरंत मुझे बुलाया। बड़े स्नेह से मेरा संग्रह लेकर उस पर बात भी की। मेरे बारे में भी पूछा। लेखन पर भी बात की। कुछ ही क्षणों बाद तो लगा ही नहीं कि उनसे पहली बार मिल रही हूँ। लगा वर्षों का आत्मीय परिचय हो मानों उनसे। इतने वरिष्ठ लेकिन उतने ही सरल, सहज। मैं तो नतमस्तक हो गई उनकी सहृदयता के आगे।
फिर भी लगता रहा कि जबलपुर जाकर व्यस्त हो जाएंगे तो कहाँ याद रहेगा मेरा संग्रह उनको। लेकिन अभिभूत रह गई जब उनकी गहन, विस्तृत समीक्षा प्राप्त हुई। जिसे आचार्य जी ने न केवल फेसबुक के सभी साहित्यिक समूहों में लगाया वरन अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट किया। व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर किसी नवोदित की पुस्तक पढ़ना अपने आपमें नवोदित के लिए सौभाग्य की बात है और उस पर इतनी विस्तृत, आत्मीय समीक्षा पाना, वो पल एक गौरवमयी अविस्मरणीय पल के रूप में मेरे साहित्यिक जीवन पर अंकित हो गया।
इसके बाद भी आचार्य जी ने बहुत बार साहित्य की हर विधा में मुझे अपना स्नेहपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। उनके जैसी सरलता और सहजता अन्यत्र दुर्लभ है। उनका स्नेहाशीष सदैव बना रहे।
डॉ विनीता राहुरिकर
1 टिप्पणी:
Great articl, keep doing.
heart-touching shayari
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