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सोमवार, 22 जून 2020

दुर्गावती बलिदान गाथा

२४ जून १५६४ महारानी दुर्गावती शहादत दिवस पर विशेष रचना
छंद सलिला: ​​​शुद्ध ध्वनि छंद
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छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १८-८-८-६, पदांत गुरु
लक्षण छंद:
लाक्षणिक छंद है / शुद्धध्वनि पद / अंत करे गुरु / यश भी दे
यति रहे अठारह / आठ आठ छह, / विरुद गाइए / साहस ले
चौकल में जगण न / है वर्जित- करि/ए प्रयोग जब / मन चाहे
कह-सुन वक्ता-श्रो/ता हर्षित, सम / शब्द-गंग-रस / अवगाहे
उदाहरण:
१. बज रए नगारे / गज चिंघारे / अंबर फारें / भोर भओ
खुर पटकें घोड़े / बरबस दौड़े / संयम छोड़े / शोर भओ

गरजे सैनानी / बल अभिमानी / मातु भवानी / जय रेवा
लें धनुष-बाण सज / बड़ा देव भज / सैनिक बोलें / जय देवा

कर तिलक भालपै / चूड़ी खनकीं / अँखियाँ छलकीं / वचन लिओ
'सिर अरि का लइओ / अपना दइओ / लजे न माँ खों / दूध पिओ'

''सौं मातु नरमदा / काली मैया / यवन मुंड की / माल चढ़ा
लोहू सें भर दौं / खप्पर तोरो / पिएँ जोगनी / शौर्य बढ़ा''

सज सैन्य चल परी / शोधकर घरी / भेरी-घंटे / संख बजे
दिल कँपे मुगल के / धड़-धड़ धड़के / टँगिया सम्मुख / प्रान तजे

गोटा जमाल थो / घुला ताल में / पानी पी अति/सार भओ
पेड़ों पर टँगे / धनुर्धारी मा/रें जीवन दु/श्वार भओ

वीरनरायन अ/धार सिंह ने / मुगलों को दई / धूल चटा
रानी के घातक / वारों से था / मुग़ल सैन्य का / मान घटा

रूमी, कैथा भो/ज, बखीला, पं/डित मान मुबा/रक खां लें
डाकित, अर्जुनबै/स, शम्स, जगदे/व, महारख सँग / अरि-जानें

पर्वत सें पत्थर / लुढ़का दै कित/नउ भए घायल / कुचल मरे-
नत मस्तक आसफ / रन विक्रम लख/ सपन टूटते / देख भगे

बम बम भोले, जै / सिव संकर, हर / हर नरमदा ल/गो नारो
लै जान हथेली / पर गोंडन ने / मुगलन को बढ़/-चढ़ मारो

आसफ खां हक्का / बक्का, छक्का / छूटो याद भ/ई मक्का
सैनिक चिल्लाते / हाय! हाय! है / अंतकाल बिल/कुल पक्का

होगई साँझ निज / हार जान रन / छोड़ शिविर में / लुको रओ
छिप गओ: तोपखा/ना बुलवा लौ / सुबह चले फिर / दाँव नओ

रानी बोलीं "हम/ला हो हम / रात शत्रु को / पीटेंगे
सरदार नें माने / रात करें आ/राम, सुबह रन / जीतेंगे

बस इतई हो गई / चूक बदनसिंह / ने सराब थी / पिलवाई
गद्दार भेदिया / देस द्रोह कर / रओ न किन्तु स/रम आई

सेनानी अलसा / जगे देर सें / दुश्मन तोपों / नें घेरो
रानी ने बाजी / उलट देख सो/चा बन-पर्वत / हो डेरो

बारहा गाँव सें / आगे बढ़कें / पार करें न/र्रइ नाला
नागा पर्वत पे / मुग़ल न लड़ पा/एँगे गोंड़ ब/नें ज्वाला

सब भेद बता खें / आसफ खां को / बदनसिंह था / हर्षाओ
दुर्भाग्य घटाएँ / काली बनकर / आसमान पर / था छाओ

डोभी समीप तट / बंध तोड़ मुग/लों ने पानी / दओ बहा
विधि का विधान पा/नी बरसा, कर / सकें पार सं/भव न रहा

हाथी-घोड़ों ने / निज सैनिक कुच/ले, घबरा रन / छोड़ दओ
मुगलों ने तोपों / से गोले बर/सा गोंडन को / घेर लओ

सैनिक घबराए / पर रानी सर/दारों सँग लड़/खें पीछे
कोसिस में थीं पल/टें बाजी, गिरि / पर चढ़ सकें, स/मर जीतें

रानी के सौर्य-पराक्रम ने दुश्मन का दिल दहलाओ थो
जा निकट बदन ने / रानी पर छिप / घातक तीर च/लाओ थो

तत्क्षण रानी ने / खींच तीर फें/को, जानो मु/श्किल बचना
नारायण रूमी / भोज बच्छ को / चौरा भेज, चु/ना मरना

बोलीं अधार सें / 'मारो, मोखों / बदन, नें दुश्मन / छू पाए'
चाहें अधार लें / उन्हें बचा, तब / तक थे सत्रु नि/कट आए
रानी ने भोंक कृ/पाण तुरत: 'चौरा जाओ' कह प्रान तजो
लड़ दूल्हा-बग्घ स/हीद भए, सर/मन रानी को / देख गिरो

भौंचक आसफखाँ / सीस झुका, जै / पाकर भी था / हार गओ
जनमाता दुर्गा/वती अमर, घर/-घर में पुज रईं / नाम मिलो

पढ़ सौर्य कथा अब / भी जनगन, रा/नी को पूज / रओ भइया
जनहितकारी सा/सन खातिर नित / याद करै कह / खें मइया

बारहा गाँव में / रानी सरमन /बग्घ दूल्ह के / कूर बना
लै कंकर एक र/खे हर जन, चुप / वीर जनों को / सीस नवा

हैं गाँव-गाँव में / रानी की प्रति/माएँ, कई ता/लाब बने
शालाओं को भी, नाम मिलो, उन/को- देखें ब/च्चे सपने

नव भारत की नि/र्मान प्रेरना / बनी आज भी / हैं रानी
रानी दुर्गावति / हुईं अमर, जन / गन पूजे कह / कल्यानी
नर्मदासुता, चं/देल-गोंड की / कीर्ति अमर, दे/वी मैया
जय-जय गाएँगे / सदियों तक कवि/, पाकर कीर्ति क/था-छैंया
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टिप्पणी: कूर = समाधि,

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