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रविवार, 28 जून 2020

शारद वंदना

शारद वंदना
छंद : चौपाई
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अमल विमल निर्मल मनभावन। शुभ्र श्वेत वसना माँ पावन।
कल की कल को भेंट अनुपमा। आप सृज रहीं मातु उत्तमा।।
पल-पल करतीं कर्म निरंतर। धर्म-मर्म शोभित अभ्यंंतर।।
सत्-शिव-सुंदर सब हितकारी। सत्-चित्-आनँद कुंज विहारी।।
व्याप्त नर्मदा की कलकल में। सिंधु-गंग-कावेरी जल में।।
पवन प्रवह तव कीर्ति सुनाता। अर्णव लहर-लहर जय गाता।
गर्जन करते मेघ हुलसकर, कलकल सलिल सुशांति प्रदाता।
कलरव कर खग तुम्हें मनाते।
वीणा-तार निनाद गुँजाते।।
भ्रमरवृंद नित करें वंदना। रस-भावित अर्चना प्रार्थना।। भोर भक्ति भावित हो जगती। दोपहरी श्रम कर भव तरती।।
संध्या नमित प्रार्थना गाती। रजनी मौन मंत्र दुहराती।।
छनन छनन छन नूपुर बजते। सरगम स्वर कंठों में सजते।।
कवि कर कागज कलम उठाते। शब्द ब्रह्म की जय गुंजाते।।
पग-कर, मुखमुद्रा मिल जाते। चित्र गुप्त साकार बनाते।
आराधक कर थाम सुमिरिनी।
सुमिर तुम्हें तरते वैतरणी।।
यंत्र-मंत्र तुम, तंत्र तुम्हीं हो। गुण गुणेश गुणवान गुणी हो।।
तुम्हीं शौर्य ममता करुणा हो। माया मोहमयी ममता हो।।
लास रास रस हास तुम्हीं हो। प्रापक प्राप्ति प्रयास तुम्हीं हो।।
इड़ा-पिंगला ऋद्धि-सिद्धि हे!, रमा-उमा हो शुद्धि-बुद्धि हे!!
सलिल करे अभिषेक धन्य हो। प्राण ऊर्जा तुम अनन्य हो।
विधि प्रेरक, हरि बल, शिव पूजा। तुम सम कहीं न कोई दूजा।।
शून्य अनंता दिशा-दिगंता। ऋषि-मुनि ध्याते माते! कंता।।
संजीवित मम आत्म करो माँ। सहज सुलभ परमात्म करो माँ।।
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२३-६-२०२०

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