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रविवार, 7 जून 2020

मुक्तक

मुक्तक:
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मुक्त मन से रचें मुक्तक, बंधनों को भूलिए भी.
विषधरों की फ़िक्र तजकर, चंदनों को चूमिये भी.
बन सकें संजीव मन में, देह ले मिथिलेश जैसी-
राम का सत्कार करिए, सँग दशरथ झूमिये भी.
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ज्ञान-कर्मेन्द्रिय सुदशरथ, जनक मन को संयमित रख.
लख न कोशिश-माथ हो नत, लखन को अविजित सदा लख.
भरत भय से विरत हो, कर शत्रु का हन शत्रुहन हो-
जानकी ही राम की है जान, रावण याद सच रख.
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७-६-२०१८  

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