नवगीत
अविनाश ब्यौहार
*
पंख दिये हैं
अविनाश ब्यौहार
*
पंख दिये हैं
कुदरत ने पर
कैसे भरूं उड़ान!
*
अब खतरे में
परवाजें हैं!
गूंगी गूंगी
आवाजें हैं!!
इतने पर भी
आसमान सोया
है चादर तान!
*
चुप्पी ढोते
हुये ठहाके!
खेत कर रहे
हैं अब फांके!!
कष्टों का है
खड़ा हिमालय
चढ़ जा रे इंसान!
*
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर-9826795372
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