चन्द माहिया सावन के
आनंद पाठक
*
सावन की घटा काली
याद दिलाती है
वो शाम जो मतवाली
*
सावन के वो झूले
झूले थे हम तुम
कैसे कोई भूले
*
सावन की फुहारों से
जलता है तन-मन
जैसे अंगारों से
*
आएगी कब गोरी?
पूछ रही मुझ से
मन्दिर की बँधी डोरी
*
क्या जानू किस कारन?
सावन भी बीता
आए न अभी साजन
*
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