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मंगलवार, 14 अगस्त 2018

गीत नवगीत

एक रचना-
गीत और
नवगीत नहीं हैं
भारत इंग्लिस्तान।
बने मसीहा
खींचें सरहद
मठाधीश हैरान।
पकड़ न आती
गति-यति जैसे
हों बच्चे शैतान।
अनुप्रासों के
मधुमासों का
करते अनुसंधान।
साठ साल
पहले की बातें
थोपें, कहें विधान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
दुश्मन सच पहचान।
लगे दूर से
बेहद सुंदर
पहले हर मुखड़ा।
निकट हुए तो
फेर लिया मुख
यही रहा दुखड़ा।
कर-कर हारे
कोशिश फिर भी
सुर न सधा सुखड़ा।
तुक तलाशने
अटक-भटककर
निकली हाए! जान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
सच से तनिक अजान।
कभी लक्षणा
कभी व्यंजना
खेल रहीं भॅंगड़ा।
थोप विसंगति
हाय! हो रहा
भाव पक्ष लॅंगड़ा।
बिम्ब-प्रतीकों
ने, मारा है
टॅंगड़ी को टॅंगड़ा।
बन विडंबना
मिथक कर गये
नव रस रेगिस्तान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
आपस में अनजान।
दाल-भात
हो रहे अंतरा
मुखड़ा मूसरचंद।
नवता का
ले नाम मरोड़े
जोड़-तोड़कर छंद।
मनमानी
मात्रा की, जैसे
झगड़ें भौजी-नंद।
छोटी-बड़ी
पंक्तियाॅं करते
बन उस्ताद महान।
गीत और
नवगीत नहीं हैं
भारत पाकिस्तान।
काव्य वृक्ष की
गीति शाख पर
खिला पुहुप नवगीत।
कुछ नवीनता,
कुछ परंपरा
विहॅंस रचे नवरीत।
जो जैसा है
वह वैसा ही
कहे, झूठ को जीत।
कथन-कहन का
दे तराश जब
झूम उठे इंसान।
गीत और
नवगीत मानिए
भारत हिंदुस्तान।
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