कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

barwai doha geet

बरवै-दोहा गीत:
*
मेघा गरजे बरसे,
है आतंक
*
कल तक आए नहीं तो,
रहे जोड़ते हाथ.
आज आ गए बरसने,
जोड़ रहा जग हाथ.
करें भरोसा किसका
हो निश्शंक?
मेघा गरजे बरसे,
है आतंक
*
अनावृष्टि से काँपती,
कहीं मनुज की जान.
अधिक वृष्टि ले रही है,
कहीं निकाले जान.
निष्ठुर नियति चुभाती
जैसे डंक
मेघा गरजे बरसे,
है आतंक
*
बादल-सांसद गरजते,
एक साथ मिल आज.
बंटाढार हुआ 'सलिल'
बिगड़े सबके काज.
घर का भेदी ढाता
जैसे लंक
मेघा गरजे बरसे,
है आतंक
****

कोई टिप्पणी नहीं: