कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

नवगीत:
संजीव 
*
दुनिया रंग रँगीली 
बाबा 
दुनिया रंग रँगीली रे!
*
धर्म हुआ व्यापार है
नेता रँगा सियार है
साध्वी करती नौटंकी
सेठ बना बटमार है
मैया छैल-छबीली
बाबा
दागी गंज-पतीली रे!
*
संसद में तकरार है
झूठा हर इकरार है
नित बढ़ते अपराध यहाँ
पुलिस भ्रष्ट-लाचार है
नैतिकता है ढीली
बाबा
विधि-माचिस है सीली रे!
*
टूट रहा घर-द्वार है
झूठों का सत्कार है
मानवतावादी भटके
आतंकी से प्यार है
निष्ठां हुई रसीली
बाबा
आस्था हुई नशीली रे!
***

९-८-२०१७
salil.sanjiv@gmail.com
#हिंदी_ब्लॉगर
#दिव्यनर्मदा

कोई टिप्पणी नहीं: