नवगीत:
संजीव
.
उठो पाखी!
पढ़ो साखी
.
हवाओं में शराफत है
फ़िज़ाओं में बगावत है
दिशाओं की इनायत है
अदाओं में शराफत है
अशुभ रोको
आओ खाखी
.
अलावों में लगावट है
गलावों में थकावट है
भुलावों में बनावट है
छलावों में कसावट है
वरो शुभ नित
बाँध राखी
.
खत्म करना अदावत है
बदल देना रवायत है
ज़िंदगी गर नफासत है
दीन-दुनिया सलामत है
शहद चाहे?
पाल माखी
***
संजीव
.
उठो पाखी!
पढ़ो साखी
.
हवाओं में शराफत है
फ़िज़ाओं में बगावत है
दिशाओं की इनायत है
अदाओं में शराफत है
अशुभ रोको
आओ खाखी
.
अलावों में लगावट है
गलावों में थकावट है
भुलावों में बनावट है
छलावों में कसावट है
वरो शुभ नित
बाँध राखी
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खत्म करना अदावत है
बदल देना रवायत है
ज़िंदगी गर नफासत है
दीन-दुनिया सलामत है
शहद चाहे?
पाल माखी
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