आइये कविता करें:२ .
संजीव
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अब इस रचना का तुकांत-पदांत की दृष्टि से परीक्षण करें. हर पंक्ति के अंत में उपस्थित दीर्घ वर्ण (है, के, ठी, की, ठे, या, ले, तीं, का आदि वर्ण) पदांत है। पंक्ति के अंत में प्रयुक्त समान उच्चारणवाले एक या अनेक शब्द पदांत कहे जाते हैं। पदांत के ठीक पहले प्रयुक्त समान वर्ण तुकांत कहा जाता है। तुकांत एक मात्रा भी हो सकती है तुकांत को ही पदांत मानकर भी काव्य रचना हो सकती है।
बागों में बसन्त आया है
पर्वत
पर पलाश छाया है
यहाँ 'आया' तुकांत और 'है' पदांत है.
पहली दो पंक्तियों में समान तुकांत और फिर एक-एक पंक्ति को छोड़कर तुकांत हो तो ऐसी रचना को मुक्तिका कहा जाता है. सामान्यतः मुक्तिका की दो पंक्तियाँ अपने आप में पूर्ण तथा पूर्व या पश्चात की पंक्त्तियों से मुक्त होती हैं. कुछ रचनाकार मुक्तिका रचनाओं को 'गीतिका' शीर्षक देते हैं किन्तु गीतिका हिंदी का प्रतिष्ठित छंद है जिसका रचना विधान बिलकुल भिन्न है. विवेच्य रचना को मुक्तिका का रूप कई तरह से दिया जा सकता है. पूरी रचना 'आया' तुकांत तथा 'है' पदांत लेकर लिखी जा सकती है,
बागों में बसन्त आया है
पर्वत
पर पलाश छाया है
ऋतु ने ली अँगड़ाई जमके
चुप बैठी मन अलसाया है
घर जाऊँ मैं किसके-किसके
मौसम कुछ तो गरमाया है
कहो दुबककर क्यों बैठे तुम
बिस्तर क्यों तुमको भाया है?
तन्नक हँस के चैया पीलो
सरसों भी तो पिलियाया है
देख अटारी बहुएँ चढ़तीं
लुक-छिप सबने बतियाया है
है बसंत ऋतुराज यहाँ का
उड़ पतंग ने बतलाया है
अब होली की तैयारी है
रंग-अबीर घर में आया है
मुक्तिका में द्विपदी की कहन सहज, सरल और प्रवाहपूर्ण होना चाहिए। किसी बात को कहने का तरीका ही उसे सहज ग्राह्य और दूसरों से अलग बनाता है।
'आया' तुकांत के साथ 'रे' पदांत भी लिया जा सकता है
।
ऐसा करने से रचना में कुछ बदलाव आएंगे और प्रभाव में भिन्नता अनुभव होगी
।
अभ्यास के तौर पर ऐसा करें
।
इनके अलावा अन्य पदांत-तुकांत लेकर भी अभ्यास किया जा सकता है
।
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